Wednesday, April 1, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी -05

मैं कई दिनों से इस बात को सोच - सोच कर बहुत परेशां था की मैं क्यो देश की लोक्तान्रिक व्यवस्था को लेकर इतनी गहरी चिंता में हूँ । बाद में यह उत्तर मिला कि शायद ये मेरा भ्रम है कि देश को आने वाले वर्षों में इस चुनाव के परिणाम से कुछ लाभ होगा ,इसलिए मैंने अपने विचार व्यक्त करने की सोच कर जन जागरण का प्रयास शुरू किया ,किंतु मैं गलत था,इस देश में निवास करने वाले लोग हजारों वर्षों से यथास्थिति वादी रहे हैं ,कोई भी शासक हो उन्हें किसी की परवाह नही रही,इस बात का साक्षी स्वयम इतिहास भी है । शक ,हूण,कुषाण, यवन अफगानी,मुगल और अंत में अँगरेज़ आए पर इस देश के लोगों ने सभी को आत्मसात कर लिया और उनकी कतई परवाह नही किया । यह देश जैसा पहले था वैसा ही है और आगे भी रहेगा। हम सब लोग ईश्वरवादी हैं ,जैसी ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा।हमें उसके लिए परेशान नही होना चाहिए । लेकिन फिर यह सोच आयी कि एक नागरिक होने के नाते मेरा व्यक्तिगत मत है कि जैसा भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं कि "कर्मणे वा धिकारस्ते माँ फलेषु कदाचान "अर्थात कर्म बिना फल की चिंता करते हुए करना चाहिए ,इसी वाक्य को ध्यान में रखकर अपने कर्तव्य और धर्म का पालन कर रहा हूँ ।
मेरे कई मित्रों ने मेरे लेखन पर किसी खास राजनितिक विचारधारा का पक्षकार होने का आरोप लगाते हुए कई पुराने पोस्ट में लिखी बातों पर अपनी आपत्ति जताई इनमे मुख्य रूप से विमान अपहरण काण्ड पर श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा आतंकवादियों को छोड़े जाने के निर्णय के सम्बन्ध में मेरे विचारो को अनुचित बताया गया परन्तु मैं अपने पूर्व में व्यक्त विचार पर किसी प्रकार की कोई क्षमा याचना नही कर रहा हूँ क्योकि मात्र इस बात से कि आगे चलकर छोड गए आतंकी बाद में और बड़ी हानि देश वासियों को पंहुचा सकते हैं इसलिए विमान के अन्दर बंधक बने यात्रिओं को जिन्हें अपहरण कर कंधार ले जाया गया था जहाँ आतंकवादियों ने एक यात्री की हत्या की और तब उनके द्वारा दो आतंकी जो उस समय भारत में जेल में थे ,को छोड़ने की शर्त पर हवाई जहाज के बंधकों को छोड़ने की सरकार के समक्ष अफगानी विदेश मंत्री के माध्यम से रखा था, उस समय अफगानिस्तान तालिबानी शासक मुल्ला उमर के नियंत्रण में था ,जो पाकिस्तान के पूर्ण समर्थन में था,जहाँ हम आक्रमण भी नही कर सकते थे ,ऐसे हालत में अपने सैकड़ों हमवतनों को कंधार में बेमौत मरने के लिए छोड़ देना किसी भी नजरिये से उचित नही था,परिस्थिति विशेष में सरकार को आतंकवादियों की मांग पूरी करनी पड़ी ।मुंबई के आतंकी हमले में जिस प्रकार कि कार्यवाही आज कि सरकार कर सकी उसका कारण घटना का देश में होना था ,जिसके लिए वर्तमान सरकार ख़ुद की पीठ थाप थापा रही है परन्तु घटना के समय गृह मंत्री श्री शिवराज पाटिल और अब्दुल रहमान अंतुले के द्वारा जारी बयान के प्रधान मनरी श्री मन मोहन सिंह अथवा सं०प्र० ग० की चेयर पर्सन सोनिया जी के पास कोई उत्तर है ,मैं अपने मित्रों से पूछना चाहता हूँ कि कितने देश इस्राइल जैसे हैं जिन्होंने विदेशी ज़मीन से आतंकियों के चंगुल में आए देशवासियों को छुडा कर वापस ले जा सके हैं।पूरे विश्व में इस्राइल ने अकेला उदहारण पेश किया था। यदि आज वर्तमान नेतृत्त्व में आतंकवाद से लड़ने की सचमुच इच्छा शक्ति हैं तब उन्हें सीमापार के आतंकी ठिकानो पर सीधे आक्रमण कर आतंकियों के ट्रेनिग कैम्पों तबाह कर उनकी जड़े साफ कर देना चाहिए था, किन कारणों से अबतक इन आतंकी कैम्पों को छोड़ रखा गया है । मेरी राय में हजारो कि जान इसलिए जाने दे कि आगे कोई बड़ा खतरा हो सकता है ,केवल इस संभावना पर सरकार निर्णय नही लेती है । इसलिए मेरा निवेदन है कि कृपया मेरे द्वारा व्यक्त विचारों को समझने का प्रयास करे । जहाँ तक किसी एक विचारधारा कि तरफ़ झुकाव की बात हैं मैं मानता हूँ कि बचपन से ५७ - ५८ वर्षों तक जिस वातावरण और परिवेश में व्यक्ति रहता है उसका कुछ न कुछ प्रभाव उसके विचारों पर अवश्य पड़ता है किंतु मैं दृढ़ता से कहता हूँ कि मैंने जो कुछ भी लिखा वह किसी पार्टी की विचारधारा या उसका प्रचार के लिए था ,इससे आश्वस्त रहे।
कृपया अपने विचार अवश्य ब्लॉग पर लिखने का कष्ट करें।

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