Wednesday, April 22, 2009

राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में कटुता का आधिक्य अनुचित

कल दूसरे चरण का मतदान पूरे देश में होना है किंतु ज्यों -ज्यों चुनाव आगे बढ़ रहा है त्यों-त्यों राजनितिक दलों में कटुता प्रतिद्वंदिता से बहुत ज्यादा अधिक हो गई है,बात प्रतिद्वंदिता के स्तर तक उचित है किंतु उससे अधिक यह वैमनस्यता का स्वरुप लेता जारहा है जो अनुचित है । यदि देखे तो सही मायनों में प्रत्येक दल का अस्तित्व देश हित के कारण है ,हर दल के सिद्धांत राष्ट्र हित के इर्द गिर्द ही होने चाहिए किंतु सत्ता का युद्ध देश में कुछ जरूरत से ज्यादा ही कटु होता जा रहा है । देश की सभी बड़ी छोटी और क्षेत्रीय सभी दल एक दुसरे के विरुद्ध विष वमन कर रहे है,यह इस हद तक पहुच गया है की पार्टियों के शीर्ष नेता एक दुसरे पर व्यक्तिगत स्तर पर आकर बयान दे रहे हैं ,ऐसा लगरहा है की मर्यादा समाप्त हो गई है ,प्रधान मंत्री,लोक सभा के प्रतिपक्ष के नेता पार्टी के अध्यक्ष सभी घिनौना आरोप लगा रहे हैं ,जब की इसी देश में गीता का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने दिया था जिसके अनुसार युद्ध सदैव अच्छाई और बुरे के मध्य होता है और सत्य और धर्म के लिए शास्त्र उठाने का आवाहन किया गया किंतु युद्ध के भी कुछ नियम होते हैं की शत्रु के भी कमर के नीचे वार नही किया जाता था किंतु देश के वर्तमान नेताओं ने सारी मर्यादायों का एक तरह से परित्याग कर दिया है ,जो देश के लोकतंत्र के भविष्य के लिए अच्छा नही है । इसलिए मेरी सभी स्तरीय नेताओं से निवेदन है कि सभी नेता कृपा करके अपनी अपनी मर्यादा में रहते हुए चुनाव को खेल भावना से होने दे ।
इन नेताओं को याद मैं दिलाना चाहता हूँ कि १६ मई को चुनाव के परिणाम आ जायेंगे फिर सभी निर्वाचित सांसदों को एक साथ बैठना होगा और देश की समस्या का समाधान ढूढना होगा,इस कार्य में एक दूसरे से संवाद करना होगा तब यह चुनावी कटुता देशहित के बीच में अवश्य आएगी । मेरा मानना है की देश की शीर्ष दलों में संवाद हीनता अनुचित है । यदि आप कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मुख्य विचार धारा के विषय में में चिंतन करे तब निष्कर्ष यह निकलेगा की दोनों ही पार्टियाँ मध्यम मार्गीय है,आर्थिक विचार धारा भी एक सी है ,केवल नेत्रित्व और पार्टियों के संगठन में चयन की प्रक्रिया की भिन्नता है और दूसरे अनावश्यक रूप से सेकुलर और तथा कथित साम्प्रदायिकता का विरोध दिखाई देता है ,मैं आप से पूछना चाहता हूँ की देश की सत्ता की बागडोर भारतीय जनता पार्टी के पास १९९८ से २००४ तक थी क्या उस समय देश से अल्प संख्यकों को देश से बहार करने या किसी प्रकार से उत्पीडन हुआ ,केवल गुजरात के दंगों को अपवाद स्वरुप से कहा जा सकता है अन्यथा पूरा ६ वर्षों का शासन सामान्य था यदि गुजरात के दंगों की बात होती है तो मैं याद दिलाना चाहता हूँ की श्रीमती इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद सिक्खों के विरुद्ध दिल्ली और समूचे उत्तर भारत में मारे गए सिक्खों की संख्या शायद किसी भी एक संप्रदाय के सबसे अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था यह घटना स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे बड़ी घटना है ,इसके अतिरिक्त अनेक दंगे कांग्रेस के शासन काल में हुए उदाहारण स्वरूप मेरठ ,अलीगढ,वाराणसी,भागलपुर आदि में हुए क्या इन दंगों में अल्पसंख्यकों को क्षति नही पहुचाई गई , इसलिए मैं सेकुलर और साम्प्रदायिकता के फालतू बहस में चुनाव के अतिरिक्त नेताओं और आम नागरिक को ध्यान नहीं देना चाहिए । वैसे नियमतः चुनाव में भी इस बहस में नेताओं को समय बर्बाद न कर सार्थक और देशहित की बहस होनी चाहिए किंतु सार्थक चर्चा का पूरे अबतक हुई चर्चा का आभाव सभी दलों की तरफ से देखने को मिला । उचित हो की स्वस्थ आलोचना और बीती ताहि बिसार दे के साथ बातें हो,सभी दल अपने भविष्य की सार्थक नीतियों जैसे विकास ,अर्थ व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंक वाद और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों आदि पर बहस होनी चाहिए , उम्मीद करता हूँ की अभी चुनाव के पाँच चरणों में से केवल दूसरा चरण कल पूरा होने वाला है और अभी तीन चरण होने शेष हैं शायद अब सभी दलों में वैचारिक और व्यावहारिक परिवर्तन देखने को मिले।

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