Friday, April 10, 2009

लोकतंत्र में मतदान की अनिवार्यता की जरूरत है

आज मुझसे किसी अपने मिलने वाले युवक ने कहा कि क्या वोट का बहिष्कार करने का मतदाता को अधिकार चुनाव नियमों में संविधान द्वारा प्राप्त है जिसका उत्तर मैं इस पोस्ट में देना चाहता हूँ ,भारतीय जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार वोट के बहिष्कार का अधिकार कि मान्यता इस अधिनियम में होकर उसका स्वरुप कुछ इस प्रकार है कि यदि मतदाता पोलिंग बूथ पर जाकर पीठासीन अधिकारी के समक्ष यह बात कहे कि चुनाव के लिए जितने भी प्रत्याशी मैदान में हैं वो सभी अयोग्य है और वो इनमे से किसी को भी मत/वोट देना नही चाहता,उस दशा में पीठासीन अधिकारी को एक पुस्तिका में मतदाता का नाम सहित पूरा विवरण लिखकर मतदाता से हस्ताक्षर करेगा। यदि ऐसे मतदाताओं कि संख्या विजयी प्रत्याशी के मत से अधिक होने पर पुन: चुनाव की प्रक्रिया की जाने का उल्लेख है ,यह मैं अपने संज्ञान के आधार पर लिख रहा हूँ ,अब प्रश्न उठता है कि जिस प्रक्रिया का उल्लेख ऊपर किया गया है उसका कोई औचित्य वास्तव में कोई नही है ही इस का कभी उपयोग किया जा सका मेरे मत से जन प्रतिनिधि कानून में वैसे तो कई महत्वपूर्ण संशोधन किया जाना जरूरी है, परन्तु इस देश में स्विट्ज़रलैंड यथा कुछ अन्य योरोपीय देशों जैसा रिकाल(वापस बुलाने )के अधिकार मतदाता को विजयी सांसदों के अब तक के कार्य और व्यवहार को देख लेने के पश्चात् मतदाता को उन्हें वापस बुलाने का मिलना उचित है ,किंतु भारत कि तुलना स्विट्जरलैंड और उस जैसे देशों से नही कि जा सकती जिन देशों में रिकाल का अधिकार मतदाता को प्राप्त है उनकी जनसँख्या बहुत कम और क्षेत्रफल भी कम वाले देश हैं ,इसलिए भारत में इस तरह के परिवर्तन के पहले इसके प्रायोगिक कठिनाइयों को अच्छी तरह जा लेना होगा हमारा देश दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला लोकतंत्र है जो क्षेत्रफल,जनसंख्या,विभिन्न भाषाओँ और विभिन्न सम्प्रदायों का है ,इन विषयों पर विचार कर ही कोई संशोधन किए जाने चाहिए
अब प्रश्न यह होता है कि मतदान का बहिष्कार कि क्या आवश्यकता गयी ,आवश्यकता तो अधिक से अधिक संख्या में मतदान के प्रतिशत को बढ़ने और जागरूक मतदाता की तरह मतदान करने की है और मतदान के पहले सर्वथा सबसे योग्य प्रत्याशी को वोट देने की है किंतु साथ ही यह भी देखना जरूरी है कि प्रत्याशी अपराधी,दलबदलू,और क्षेत्रीय पार्टी का हो ,अन्यथा आप के वोट का सौदा पार्टी के मुखिया द्वारा अपने व्यक्तिगत हित में आपके दिए मत का दुरुपयोग कर लेगा ,परोक्ष रूप से पार्टी का सबसे बड़ा नेता जो एक प्रकारसे पार्टी का अधिनायक होता है,के हाथ हमने आने वाले पाँच साल सौप दियाआपको इस बात से सतर्क रहना होगा ।आज देश की सभी क्षेत्रीय पार्टियाँ केवल जातिवादी आधार पर बनाई गयी ,इसका उदहारण उत्तर प्रदेश से देखना शुरू करे तो हम पायेंगे की समाजवादी पार्टी का गठन जब किया तो उसका नाम समाजवादी पार्टी जरूर रखा किंतु यह पार्टी पुरानी स्वराम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली पार्टी नही है ,बल्कि यह पार्टी केवल जाति विशेष के नाम पर श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा बनाई . किंतु उनका हित और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पार्टी बनाये जाने की जरूरत होने की वजह से बनी ,अन्यथा तब जनता दल जो तब स्व० विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में थी और मा० मुलायम सिंह जी उसी पार्टी के प्रदेश में मुख्या मंत्री रह चुके थे ,किन कारणों से नयी पार्टी के गठन की आवश्यकता थी ,इसी तरह से श्री अजीत सिंह जी ने जनता दल से केवल जातिगत वोटों के आधार पर पुँरानी लोकदल को पुनर्जीवित किया किया इनका भी अलग पार्टी बनाने का कारण आप सब जानते ही हैं ,अपना दल पार्टी का गठन भी केवल जाति विशेष के मत के आसरे है किंतु दुर्भाग्य से इस पार्टी के स्वामी श्री सोनेलाल पटेल को जनता ने गौरवान्वित नही किया ,जिसके कारण पार्टी की दशा सोचनीय बनी है किंतु लोकतंत्र का अहित अच्छे प्रत्याशी का वोट काटकर अवश्य कर रहे हैं ,इसी तरह से बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और श्री लालू प्रसाद जी और लोकतांत्रिक जनता पार्टी श्री राम विलास पासवान की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और जातिगत वोटों के ध्रुवीकरण के इरादे से बनी और इनके परिणाम प्रदेश की भोली भाली जनता को भुगतना पड़ाकभी फिर क्षेत्रीय दलों के भारत के अन्य प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों पर चर्चा होगीफिलहाल तो इस लोक सभा के चुनाव में सभी पाठकों से शत प्रतिशत मतदान करने की महती अपेक्षा है
कल मैंने इसी विषय पर श्री सूर्य कुमार पांडे की कविता का उल्लेख किया था ,आशा करता हूँ की आप सब को पसंद आयी होगी और देश को यह दिखा दे कि हम सब अब जागरूक होगये हैं आईये हमसब यह उदघोष करे : -
"अबकी जनता जागी है और परिवर्तन की बारी है "

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