Wednesday, April 15, 2009

लोक सभा निर्वाचन २००९ के दो महत्वपूर्ण मुद्दे

वर्तमान चुनाव के पहले चरण का दिन अब १२ घंटे से कम शेष है,अब जनता का फोकस चुनाव के दो मुद्दे जो मिडिया के मार्फ़त सामने आए है उनमे सबसे पहला मुद्दा विकास का और दूसरा मुद्दा आतंकवाद का है । अब जनता इन दोनों मुद्दों के आधार पर वोट देती है या पहले की तरह जाति,धर्म के आधार पर यह देखने की बात होगी .यदि भारतीय जनतंत्र स्वस्थ्य हुआ होगा तो जनता को निशित रूप से इन्ही दोनों मुद्दों पर अपना फोकस बनाये रखते हुए वोट करना होगा। यदि किसी मतदाता ने अभी तक न सोचा है तो आज और अभी सोच ले । क्यो की उनको यह अबतक के सामाजिक व्यवस्था से अनुभूत कर लिया होगा कि समाज में जिस प्रकार से अर्थ/धन का महत्त्व बढ़ा है उससे समाज में जाति के अलावा आर्थिक स्थिति ने संबंधों का स्थान बना लिया है ,इसी तरह यदि दो समकक्ष आर्थिक रूप से समान व्यक्तियों में भिन्न धर्म होने के बाद भी आपसी मित्रता होती है ,अब एक जाति या एक सम्प्रदाय का होना संबंधों का आधार नही रह गया है ,कम से कम समाज के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों में तो कतई नहीं । पूर्व में भी ऐसा ही था किंतु मिडिया आज की तरह प्रभावी नही था जिसके कारन आम आदमी को ऐसे संबंधों की जानकारी नही हो पति थी । इसलिए आज वास्तविकता के अनुरूप मतदाता को बिना जाति बिरादरी और धर्म और सम्प्रदाय के पचडे में पड़े सीधे सीधे इन्ही दोनों मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए किसी एक राष्ट्रीय दल अथवा उन्ही के गठबंधन को वोट करे इसी में समाज और देश की भलाई है । फालतू सेकुलर और नान सेकुलर के चक्कर में न पड़े । सेकुलर और नान सेकुलर की बात केवल राजनितिक दुराग्रह के अलावा और कुछ भी नही है । जनता से यह आग्रह भी है की जिस भी दल या गठबंधन को वोट करे उसे इतनी संख्या में लोक सभा में जिताए की उस दल को पूरी तरह दायित्व निर्वहन का अवसर मिले और आगे चलकर दल को यह कहने का अवसर न रहे की उसके पास सदन में इतनी संख्या नही जिसके कारण वो अमुक कार्य नही कर सके । सदन में पूर्ण बहुमत के आभाव में अन्य दलों को सौदे बाज़ी का मौका कम से कम जनता इस चुनाव में तो न ही दे ।
लोकतंत्र में बहुत संख्या में दलों का होना बहुत शुभ लक्षण नही है । आवश्यकता अब समान विचार धारा के दलों का आपस में ध्रुवीकरण की है ,जिसे आगे चलकर लोकतंत्र और दृढ़ और सशक्त होगा । प्राय: सभी विकसित देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था में दो या तीन दल से अधिक नही होते हैं,जैसे हम जानते हैं की अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दो पार्टियाँ है ,ब्रिटेन में लेबर,कंजर्वेटिव और लिबरल तीन पार्टियाँ है । इसी तरह जर्मनी और फ्रांस में तीन तीन पार्टियाँ हैं । जैसा की आप जानते हैं की इस देश का संविधान अमेरिका और ब्रिटेन के अंशों से बना हैं ,इसके विपरीत यहाँ दलों की संख्या बहुत अधिक हो जाने की वजह से जनता के मतों का अनावश्यक ढंग से विभाजन होता है और कई बार थोड़े से अधिक वोट पाने वाला प्रत्याशी चुनाव में विजयी हो जाता है । वोट देने के पहले इन बातों का ख्याल आप के जेहन में रहना जरूरी है ।
यहाँ इस पोस्ट में मैं पार्टियों के घोषणा पत्रों का उल्लेख करना चाहूँगा जिनमे जनता को अनेक प्रकार के सुनहरे सपने दिखाए गए हैं ,जैसे जनता की आर्थिक दशा में सुधर करने के वादे,सड़क बनवाने ,अस्पताल,विद्यालय और कृषि में किसानों को अनेक तरह की सुविधा मुहैया कराये जाने की बातें और वादे होते हैं किंतु आज तक जनता ने वास्तविक रूप में पार्टयों से हिसाब नही लिया नतीजा देश की जनता जहाँ के तहां पड़ी है जबकि नातों की आर्थिक स्थिति में अभूतपूर्व सुधार हुआ है ,चुनाव आयोग के निर्देश के बाद अब चुनाव में सभी प्रत्यशियों को अपनी अम्पत्ति चल और अचल सभी का व्यौरा देना पड़ रहा जिससे यह स्पष्ट हो गया है की नेताओं में अधिकांश नेता करोडो की संपत्ति अर्जित किए हैं । जनता को अब इसका हिसाब भी लेने की जरूरत है की इन नेताओं ने यह दौलत कहाँ और कैसे बनाई । जिससे चुनाव लड़ने वाले और सांसदों और विधायकों पर जनता दबाव बना रहे और वे सुचिता से काम करे ।

No comments:

Post a Comment

HTML