Thursday, March 22, 2012

केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार को सपा एवं बसपा का समर्थन क्या उनकी दोगली नीति नहीं ?

अभी पिछले माह में उत्तर  प्रदेश के निर्वाचन हुए थे जिनमे कांग्रेस,सपा और बसपा सबने एक दुसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ा और आरोप प्रत्यारोप का का सिलसिला खूब चला किन्तु चुनाव समाप्त होते ही सपा और बसपा ने केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार को संसद में समर्थन देना आरम्भ कर प्रदेश की जनता को धोखा देने का काम शुरू कर दिया,अभी आज संसद के दोनों सदनों में विपक्ष द्वारा 10.7  लाख करोड़ कोयला घोटाले के CAG की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी सपा नेता से संसद में सरकार को समर्थन देने की अपील की है.
इससे बड़े दोमुहेपन का और कोई उदाहरण और देखने की मिसाल सामने है.मेरी आम जनता से अपील है की क्या इसका जवाब वह इन सभी पार्टियों से नहीं चाहती ?  
              

Wednesday, March 21, 2012

देश का नेता कोई नहीं

वर्तमान में देश में राष्ट्रीय स्तर का किसी भी राष्ट्रीय राजनितिक पार्टियों में एक भी नेता नहीं जो पूरे देश में सामान रूप से सम्मानित हो.ऐसा लगता है की जवाहर लाल नेहरु ,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,लाल बहादुर शास्त्री ,इंदिरा गाँधी,मोरार जी भाई ,राजीव गाँधी तथा अटल बिहारी बाजपाई के बाद कोई नेता ऐसा नहीं है जिसे सम्पूर्ण देश में एक सामान नेता स्वीकार किया गया हो. सामान्य रूप से यह मान्यता रही है की प्रधान मंत्री देश का नेता हुआ करता था.किन्तु इस परम्परा को चरण सिंह,चन्द्रशेखर, बी पी सिंह,देव गौड़ा और मन मोहन सिंह जैसे तथा कथित प्रधान मंत्रियों ने समाप्त कर दिया.यह देश के सामने एक बहुत बड़ा संकट है.देश में ऐसे कई नेता हैं जिन्हें क्षेत्रीय स्तर पर काफी सम्मान प्राप्त है.उदाहरण के तौर पर बंगाल में ममता बनर्जी,ओडिशा में नवीन पटनायक,तमिलनाडु में जय ललिता अथवा के० करूणानिधि,महाराष्ट्र में शरद पवार अथवा बाला साहेब ठाकरे,आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू,गुजरात में नरेन्द्र मोदी,बिहार में नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश में मायावती अथवा मुलायम सिंह यादव जैसे अत्यंत प्रभावशाली नेता है जिन्हें अपने प्रदेश अथवा क्षेत्र की जनता में मान्यता परत है किन्तु इनमे से किसी नेता को देश का नेता नहीं कहा जा सकता है.

Tuesday, March 20, 2012

बीजेपी को अपनी नीतियों और नेताओं को बदलना होगा

उत्तर प्रदेश के विधान सभा निर्वाचन २०१४ लोक सभा के सामान्य निर्वाचन के पूर्व का सेमी फिनाल था.उसमे बीजेपी काफी पीछे रह गयी,बीजेपी का नेत्रित्व और कार्यकर्त्ता दोनों को परिणाम से बहुत निराशा हाथ लगी,किन्तु केवल परिणाम से हताश होने की आवश्यकता नहीं है,इसके लिए पार्टी के सभी नेता और कार्य करता को बैठ कर गंभीर चिंतन की जरूरत है,पार्टी को देखना होगा की पार्टी किन कारणों से तीसरे स्थान पर खिसक गयी . निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की अभिसूचना जारी होने के काफी दिनों बाद पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की,तथा उसके बाद पार्टी द्वारा चुनाव घोषणा पत्र जारी किया गया  .बीजेपी के घोषणा पत्र के पूर्व सपा ने अपना घोषणा पत्र जारी करने के साथ उसका बृहद स्तर पर प्रचार और प्रसार कर दिया था जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हो चूका था,ऐसा लगता था बीजेपी ने चुनाव के पूर्व ही अपनी पराजय मान लिया था.यदि आप २००७ के विधान सभा चुनाव से २०१२ के बीच  प्रदेश और देश के स्तर पर अवलोकन करने पर  यह प्रत्यक्ष दिखाई देगा की पार्टी ने अपनी विपक्ष की भूमिका का  सही तरह से निर्वाह नहीं किया  और जन आकान्शाओं और समस्यायों को लाने के लिए उचित  मंच प्रदान नहीं किया.साफ़ तौर पर कहा जा सकता है की पार्टी के पास सक्षम नेत्रित्व का आभाव दिखाई दे रहा है.
   यहाँ मैं यह तथ्य भी उल्लिखित करना चाहूँगा की पार्टी को अपनी नीतियों में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है.बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में अयोध्या में मंदिर निर्माण के मुद्दे का बिला वजह प्रचार किया जबकि मसला सर्वोच्च न्यायलय के विचाराधीन है.मेरी राय में आगामी २०१४ के लोक सभा के सामान्य निर्वाचन के पहले पार्टी में युवा नेत्रित्व और नयी नीतियों की आवश्यकता पर ठोस कार्यक्रम बनाकर अभी से तयारी शुरू कर देनी चाहिए.