Sunday, April 12, 2009
तुष्टीकरण की राजनीति का अंत कब होगा
चुनाव सर पर है अब पहले चरण के मतदान में सिर्फ़ ४ दिन बाकी हैं ,इसने बड़े-छोटे सभी नेताओ की नीद हराम कर दी है और चुनावी बौखलाहट में नेता और पार्टियाँ किसी भी हद तक जाने के लिए तत्पर हैं। बौखलाहट सभी पार्टियों में फैली है , छोटी -बड़ी , राष्ट्रीय - क्षेत्रीय सभी दलों में दिखाई दे रही है।जिसके चलते सारी आचारसंहिता समाप्त हो गई ,धर्म निरपेक्ष कहलाने वाले दलों में मुस्लिम तुष्टिकरण का घमासान चल रहा है । धर्मनिरपेक्षता की चैम्पियन कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव एवं आन्ध्र प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष ने तो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव को तार तार कर दिया किंतु आश्चर्यजनक रूप से चुनाव आयोग अथवा उन प्रान्तों की सरकारों ने आज तक वरुण गाँधी के मामले में जितनी सख्ती हुई उसके इर्द गिर्द भी कार्यवाही नही किया। आपको याद होगा कि कांग्रेस नीत केन्द्रीय सरकार ने सच्चर आयोग का गठन किया था, जिसने अल्पसंख्यकों को सरकारी सेवा / सेनाओं में भी अल्पसंख्यकों के आरक्षण कि रिपोर्ट दी थी, हमारे प्रधान मंत्री महोदय ने तो देश की समस्त सम्पदा पर आल्पसंख्यकों के पहला अधिकार की बात तक कह दिया था ,आज इसी क्रम में समाजवादी पार्टी ने अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया जिसने अल्पसंख्यकों की एक संस्था में विदेशी छात्रों को शिक्षा पाने के नाम पर कानूनी तौर पर स्टुडेंट वीसा दिए जाने का वादा तक कर दिया है। चुनाव घोषणा पत्र के बहाने सपा तुष्टिकरण का काम कर रही है । पाठकों गुजरात, अहमदाबाद, कालूपुर-दरियापुर-नरोडा पाटिया, ग्राहम स्टेंस, कंधमाल आदि के नाम सतत सुने होंगे, लेकिन मराड, मलप्पुरम या मोपला का नाम नहीं सुना होगा… यही खासियत है नेताओ, वामपंथी और सेकुलर लेखकों और इतिहासकारों की। मीडिया पर जैसा इनका कब्जा रहा है और अभी भी है, उसमें आप प्रफ़ुल्ल बिडवई, कुलदीप नैयर, अरुंधती रॉय, महेश भट्ट जैसों से कभी भी “जेहाद” के विरोध में कोई लेख नहीं पायेंगे,कभी भी इन जैसे लोगों को कश्मीर के पंडितों के पक्ष में बोलते नहीं सुनेंगे, कभी भी सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाने वाली बातें ये लोग नहीं करेंगे, क्योंकि ये “सेकुलर” हैं… इन जैसे लोग “अंसल प्लाज़ा” की घटना के बारे में बोलेंगे, ये लोग नरोडा पाटिया के बारे में हल्ला मचायेंगे, ये लोग आपको एक खूंखार अपराधी के मानवाधिकार गिनाते रहेंगे, अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी रुकवाने का माहौल बनाने के लिये विदेशों के पाँच सितारा दौरे तक कर डालेंगे…।मित्रों तुष्टिकरण का यह खेल देश की आज़ादी के बाद से ही चल रहा है और कब तक चलेगा । हम जब तक इन सबको गंभीरता से नही लेंगे और सरकार के चयन में ऐसे ही अन्यमनस्क होकर लापरवाही दिखायेंगे तो इसका परिणाम हमारे बाद हमारी अगली पीढी को भी भुगतना होगा । कभी मन कहता है हमसब सोये हुए हैं, जिनको मैं जगाने का प्रयास कर रहा हूँ किंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है हम सोये नही जगे हुए हैं और आपको मालूम ही है की जागे को नही जगाया जाता है।
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