Thursday, April 2, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी-06

इस माह से प्रारम्भ होने वाले १५ वी लोक सभा के निर्वाचन बड़े ही कठिन समय पर है, जब देश विशवास के संकट के दौर से गुजर रहा है ,हर तरफ़ झूठ,अन्याय,भ्रष्टचार ,अनीति,शोषण,अधर्म का बोलबाला है। राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं गौरव जैसे शब्दों का सर्वथा अभाव देखने सुनने को नही मिलते है,ऐसे मौके पर देश की आम जनता के समक्ष बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लेने की जिम्मेदारी है ,जिसे सबको बहुत सोच समझ कर अंजाम देना है । प्रत्येक राजनीतिक दलों द्वारा अपनी अपनी बिसात बिछाई जा रही है । कई दलों के नेताओं ने तो यह सार्वजानिक सभाओं में खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि उनके सहयोग के बिना देश में अगली सरकार किसी भी दशा में बनाईं नही जा सकती है और हुंकार भर रहे हैं कि जैसे उनके जैसी जातिवादी सोच जनता की है ,और जनता के वोट उन्ही की झोली में हर हाल में होगा ,कुछ दलों के नेता तो ऐसे है जिन्होंने ५ वर्ष तक सत्ता का आनंद लेने के बाद नेतृत्व करने वाले दल के विरुद्ध अलग मोर्चा बना लिया है ,इनमे श्री लालू यादव तथा श्री राम विलास पासवान ने श्री मुलायम सिंह यादव के साथ मोर्चा बना कर उत्तर प्रदेश और बिहार में सं० प्र०ग० के नेतृत्व करने वाले कांग्रेस को ललकार दिया है । इसी तरह कल तक सत्ता का भोग करने वाले तमिलनाडु के पी०यम० के० ने श्रीलंका में तमिलों पर हो रहे अत्याचार के कारण तमिलनाडु की बदली परिस्थिति में द्र०मु०क०,कांग्रेस गठबंधन को छोड़कर सुश्री जयललिता के नेतृत्व वाले गठबंधन में सम्मिलित हो गए परन्तु उनके मंत्रियों में कुछ नैतिकता थी और उन्होंने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया किंतु श्री लालू प्रसाद यादव और श्री राम विलास पासवान ने मंत्रीमंडल से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना भी उचित नही समझा और उसपर यह धींगामुश्ती कि आगे जरूरत पड़ने पर वह फिर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे यह कहने से भी बाज नही आए। अब बिहार की जनता का यह दायित्व है कि ऐसे नेताओं को जो खुलेआम अपने मुखौटे के उतार चुके हैं उन्हें सही सीख दे ,इनके किसी झासे में ने आए । इसी तरह श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा परमाणु समझौते के बाद से अब तक सं०प्र०ग० सरकार को समर्थन देते रहे अब दोनों ने एक दूसरे को धरती दिखने की सोच कर एक दूसरे के आमने सामने खड़े हैं । जनता को अब क्षेत्रीय राजनितिक दलों की वास्तविकता का पूरी तरह से खुलासा हो चुका है कि इन दलों का राष्ट्रीय राजनीती में केवल इनका महत्त्व निजी स्वार्थ है । देश के विकास के बजाय इनका उद्देश्य केवल किसी प्रकार सत्ता हासिल कर शक्ति और लूट खसोट कर करना है ,श्री मुलायम सिंह राजनीती में १९६७ में विधायक बनकर अस्तित्व में आए अब उनके और उनके परिवार के पास करोड़ों की सम्पत्ति है,इसी तरह श्री लालू प्रसाद यादव और श्री राम विलास पासवान १९७७ से संसद चुनकर आए और अब करोड़ों की सम्पत्ति के स्वामी है ,मैं पूछता हूँ देश में इन जैसे राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के अतिरिक्त देश के कितने नागरिकों का आर्थिक विकास इनलोगों की तरह हुआ । स्पष्ट है इनके द्वारा अर्जित समस्त सम्पत्ति जनता की गाढी कमी से लूटी दौलत है । अब जनता को इनके सभी अबतक किए कारनामों को ध्यान में रखकर फैसला करने का समय आगया।
इन क्षेत्रीय दलों का न तो कोई सिद्धांत है और न ही इनका कोई घोषणा पत्र ही होता है,प्राय: ये दल किसी एक नेता की जेबी संस्था की तरह होती है,इनके दलों में परी के अन्दर किसी तरह का लोकतंत्र नही होता। एक प्रकार से इन दलों में व्यक्ति विशेष की तानाशाही होती है,इन दलों का गठन ही केवल व्यक्तिगत महत्वकान्षा की पूर्ति के लिए होता है । मेरा निवेदन है की जनता ऐसे दलों को वोट देने के पहले इनके कारनामों के अवश्य याद करले।

राष्ट्रीय पार्टियों के घोषणा पत्र चुनाव के पहले जारी किए जाते हैं जिसमे सामान्य रूप से पार्टी को सत्ता में आने के बाद सिद्धांत रूप में घोषणा पत्र के वादों के मुताबिक इनको कार्य करना होता है । किंतु अभी तक घोषणा पत्र में केवल लोक लुभावने वादे किए जाते हैं जैसे भा०ज०पा० ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अयोध्या में राम मन्दिर बनाने ,काश्मीर में धारा- ३७० के हटाये जाने , राम सेतु के मामले जैसे हिंदुत्व के मुद्दों को फिर उठाया है ,जबकि ये सभी घोषणा उनके द्वारा १९९९ के चुनाव में भी किया था परन्तु सरकार गठन के बाद राम जन्म भूमि पर मन्दिर का निर्माण और धारा -३७० जैसे मुद्दों को पार्टी ने रा०ज० ग० के एजेंडा में शामिल नही किया अब पुन: इनके फिर से घोषित करने का क्या तात्पर्य है ,इसके बारे में समझना होगा। देश का विभाजन दोबारा न हो इस बात को हमेशा ध्यान में रखते हुए शांन्तिपूर्ण तरीके से मसले को हल करने के लिए दूसरे सम्प्रदाय के लोगों से सहमति बना कर इन सभी का हल करना होगा ।भा० ज ० पा० ने अपने घोषणा पत्र में समाज के सभी वर्गों के लिए अनेक लुभावने वादे किए हैं जिसमे गरीबों के लिए,किसानो के लिए ,बालिकाओं आदि सभी के लिए कुछ न कुछ घोषित किया गया है,देखना होगा कि इनके सत्ता में आने पर पार्टी क्या करती है ,किंतु इनके पिछले ६ वर्षों के कार्य काल में इनके गठबंधन की सरकार ने अवश्य राम मन्दिर आदि मुद्दों को जिसे पार्टी ने ख़ुद स्थगित कर दिया था के अतिरिक्त देश को परमाणु शक्ति के देशों में सम्मिलित करने का साहस पूर्ण कार्य ,देश की अर्थ व्यवस्था में अभूतपूर्व विकास,विश्व में भारतीय सम्मान में वृद्धि का कार्य करने का श्रेय अवश्य है ,किंतु फिर से इस दल को पुन: लोगों में अपना विश्वास जताने के लिए कठोर प्रयास करना होगा, राजनितिक दलों में गुटबाजी एक प्रकार से लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का अंश होता है,इससे किसी राजनितिक से जनता को परहेज करने की आवश्यकता नही है ,जिस दल में गुटबंदी न हो तो यह समझ लेना चाहिए कि उस दल में लोकतंत्र नही है ,जहाँ नेतृत्व की आलोचना का सामर्थ्य आम कार्यकर्ता में न हो उस दल में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है और ऐसे दल की वास्तव में लोकतंत्र में आस्था नही होती है । जनता को छद्म लोकतान्त्रिक दलों से भी सावधान रहना चाहिए ।
अब वर्तमान में सत्ता में स्थापित कांग्रेस पार्टी की चर्चा करना चाहूँगा ,यह दल देश का सबसे पुराना और स्थापित दल है ,जिसका नेतृत्व प्राय: किसी एक चोटी के नेता के पास रहता आया है और पूरी पार्टी का केन्द्र वही नेता होता था यह परम्परा अब भी वर्तमान में है। आज़ादी के बाद १९६४ तक श्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में था ,उनके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी क्रमश: श्री राजीव गाँधी और वर्तमान में श्री राजीव गाँधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गाँधी तथा आगे आने वाले समय में श्री राहुल गाँधी को नेतृत्व मिलना प्राय: निश्चित है । इस दल ने देश पर कुल ११ वर्षों को छोड़कर प्राय: एक छत्र शासन किया । दल का इतिहास हम सभी जानते है पार्टी के विषय में बताना सूरज को रोशनी दिखाने जैसी बात है । फिर भी चर्चा के लिए पार्टी के घोषणा पत्र का उल्लेख करना उचित होगा ,कांग्रेस पार्टी का तो वही २००४ का एजेंडा है ,चूँकि उनकी सरकार ने ५ वर्ष सरकार चलाई है जिसके परिणाम स्वरुप महगाई अपने चरम सीमा पर है,देश में आतंकवादी गतिविधियाँ अपने चरम पर है,बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है ,किसानों द्वारा विदर्भ,आन्ध्र प्रदेश में किसानो द्वारा आत्महत्या के मामलों में किसी तरह की कमी नही आई ,जिसे लेकर २००४ का चुनाव में उनके द्वारा मुद्दा बनाया गया था । २००४ के चुनाव में महिला आरक्षण को भी मुद्दा बनाया था किंतु ५ साल बाद भी देश की महिलाओं को सामान अधिकार की बात तो दूर उन्हें ३३% आरक्षण भी नही दे पाई, यह उनकी असफलता है जिसका पार्टी को जवाब देना होगा ।किंतु ऐसा भी नही की पार्टी ने इस अवधि कुछ भी नही किया पार्टी की सरकार ने नरेगा के मध्यम से ग्रामीणों को रोजगार का अवसर देने का काम शुरू किया जो अच्छी योजना है ,यह बात और है की योजना नेताओं और नौकरशाही के मुह का निवाला बन गई ,पर योजना बहुत अच्छी है ,आगे योजना से आम ग्रामीण को अवश्य लाभ मिलेगा । यदि कांग्रेस नेतृत्त्व की सरकार के पिछले पाँच वर्ष 2००४ से २००९ तक और १९९९ से २००४ तक की भा०ज० पा० के नेतृत्त्व की सरकार के ५ वर्ष के कार्य काल की उपलब्धियों की दृष्टि से तुलना करने पर भा०जा०पा० के नेतृत्त्व के सरकार ने तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा अच्छा काम किया । किंतु अन्तर श्री अटल बिहारी वाजपेयी , श्री लाल कृष्ण अडवानी और श्री मनमोहन सिंह के बीच का है । श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक बहुत अनुभवी राजनेता थे जिनका व्यक्तित्व चुम्बकीय था और वह एक उच्च कोटि के कूटनीतिज्ञ भी थे जिनका अन्तरराष्ट्रीय जगत में एक विशिष्ट स्थान था ,उनकी तुलना में श्री मनमोहन सिंह किस स्थान पर आते हैं, इसके बारे में हमें स्वयम तय करना होगा ,श्री मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के भी सर्वोच्च नेता भी नही है ,पार्टी के शीर्ष पर श्रीमती सोनिया गाँधी हैं ।भारतीय संविधान में प्रधान मंत्री का स्थान एक विशिष्ट बनाया गया था जो देश और सदन दोनों का नेता होता है ,श्री मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री रहते हुए इस अति महत्त्व पूर्ण पद की गरिमा में ह्रास हुआ ।जिसके कारणों के की परख करने पर यह पता चलता है कि यदि किसी एक दल का बहुमत होने कि दशा में पार्टी नेतृत्त्व अपने श्रेष्ठ नेता को इस पद पर चुनाव करती जिसे देश तथा लोक सभा दोनों का पूर्ण वास्तविक विश्वास होता,मैं चाहूँगा कि यदि कांग्रेस पार्टी फिर सत्ता में आए तो प्रधान मंत्री के पद पर स्वयं श्रीमती सोनिया गाँधी आसीन हो ,क्योकि जनता उनके नेतृत्त्व गुणों कि कायल होगई है । छद्म नेतृत्त्व के बजाय वे स्वयं अपने हाथ में सत्ता की कमान ले ।
उपर्युक्त तथ्यों के बाद मेरी आप सब से विनती है की कृपया केवल राष्ट्रीय दलों को अपना कीमती मत देने का कष्ट करे।


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