Thursday, May 21, 2015

उ0प्र0 में पानी और बिजली का घोर संकट

अप्रैल माह में बेमौसम बरसात के कारण बिजली संकट होने के बाद भी भीषण गर्मी की अनुभूति नही हुई।किन्तु मई के आरम्भ से ही बिजली और पानी का घोर संकट प्रारम्भ हो गया।हालात इतने खराब हो चुके हैं कि प्रदेश की राजधानी के अधिकांश भागों में बिजली का संकट है।साथ ही लखनऊ की जनता बूँद बूँद पानी के लिये तरस रही है।राजधानी की दशा देखने के बाद प्रदेश के अन्य जिलों में बिजली पानी के अति भयंकर स्थिति का आकलन किया जा सकता है।शायद ये समस्या मैनपूरी,कन्नौज,एटा...,इटावा आदि में सम्भवतः यह स्थिति न हो क्यों की ये जिले सत्ताधारी दल के लिये राजधानी से बेहतर स्थिति में हैं।यहां यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण बात हसि कि समाचार पत्रों के अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीवी के किसी चैनल ने देश के सबसे बड़े राज्य की इस दुर्दशा का उल्लेख तक नहीं किया।प्रदेश का आम नागरिक के लिये हर गर्मी के मौसम में यही दशा होती है।किन्तु इस वर्ष तो सरकार ने स्वयम् घोषणा क्र दिया था उनके सभी चुनावी वादे पुरे किये जा चुके हैं।तो इससे यह समझ में आता है उसकी नज़र में पानी बिजली का संकट कोई मायने नहीं रखता।

Tuesday, May 19, 2015

स्वतंत्रता के बाद देश के इतिहास का पुनर्लेखन अनिवार्य था

आज देश के युवकों और विद्यार्थियों के समक्ष के नई प्रकार की समस्या आरही है।आज क्या मेरे युवा कल में भी इसी प्रकार की समस्या हम लोगों के समक्ष थी।इस बात को मैं एक उदाहरण से बताना चाहता हूँ कि बचपन से यह पढ़ाया गया की मुगल शासक अकबर महान था।उसी के साथ साथ महाराणा प्रताप की गौरव गाथा भी पढ़ाया गया।हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की शूर वीरता का उल्लेख बताया गया।चुकी महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी युद्ध अकबर महान की सेना की विरुद्ध लड़ा था।इसलिये प्रश्न यह उठता है की दोनों चीजे एक दूसरे के विपरीत हैं।अकबर को महान बनाने के पीछे तर्क है की समुद्रगुप्त के बाद किसी भी एक बादशाह के नियंत्रण में भारत का उतना बड़ा भू भाग नहीं था जितना अकबर के नियंत्रण में। था।एक प्रकार से एक केंद्रीय शासन में देश था।अन्य कारणों में उसका अन्य मुसलमान शासकों की तुलना में उलेमा और मौलवियों को किनारे कर रखा था,साथ ही उसने हिंदुओं को जजिया से मुक्त कर रखा था।धार्मिक सहिष्णुता की नीति उसने अपनाया था।उसके दरबार में हिन्दू राजाओं को भी बराबर की मनसब देकर मनसबदार बनाया।तथा कथित राजा भारमल की कन्या से उसने विवाह कर राजपूत राजाओं का भरोसा जीतने का यत्न किया।इस तरह उसे महान कहा गया।किन्तु वहीं महाराणा प्रताप और हल्दी घाटी के युद्ध को प्रथम स्वतंत्रता युद्ध का दर्ज़ा दिया गया।मुझे स्मरण है आपातकाल के दौरान प्रधान मंत्री इदिरा गांधी ने हल्दी घाटी के युद्ध की 400वीं वर्षगांठ को बहुत धूम से मनाया था।जिससे यह तथ भी बिरोधाभास पैदा करता है की अकबर के बारे में जो सोच है वः सही नहीं है।अकबर के काल का इतिहास हमे उनके दरबारी लेखकों और आईने अकबरी जैसी किताब के आधार पर आरम्भिक रूप से पाया जाता है।बाद में अंग्रेजों के शासन कॉल में लिखा इतिहास एक खास इरादे के तहत लिखा गया था।उनका मकसद लार्ड मैकाले के बताये निर्देशों के अनुरूप शासित हिन्दुस्तानियों गुलाम बनाये रखने के दृष्टीकोण से उनके इतिहास को घटिया बताने के लिये लिखा गया।हाँ कुछ एक इतिहासकार जैसे कर्नल टाड ने काफी कुछ शोध कर राजपूतों का इतिहास लिखा गया जिसमे आंशिक रूप से सत्यता पायी जाती है।इसलिये सही मायनों में सत्य और वास्तविकता से देश की पीढ़ी को अवगत कराने की दृष्टी से इतिहास का पनरलेखन होना चाहिए।आज़ादी के बाद इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने का काम वामपंथी विचार धारा के इतिहासकारों ने किया।जिन्हें राष्ट्रीयता के विपरीत पाश्चात्य चिंतन का ज्यादा महत्व रहा है।इन लोगों के कुकृत्यों को भी उजागर करना होगा।

Monday, May 18, 2015

भारत और चीन सम्बन्धों की आवश्यकता

भारत आज जिस विकास की प्रक्रिया से गुज़र रहा है उसके लिये चीन से सम्बन्ध दृढ करना समय की मांग है।भारत और चीन एक दूसरे से हजारों वर्षों से बौद्धिक और व्यापारिक आधार पर जुड़े रहें हैं।भारत से अनेक विद्वान् और काबिल लोग चीन गए जिनमे आज़ादी के पहले डा0द्वारका नाथ कोटनिस का उल्लेख करना उचित होगा जिन्होंने चीन में रहकर चीन वासियों को अनेक महामारी से बचाने का प्रयास किया उसी तरह चीन से फाह्यान,ह्वेनसांग सहित अनेक यात्री भारत आये तथा बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण किया।
1947 में भारत स्वतन्त्र हुआ वहीं चीन एक नए रूप में 1949 में आया जब जनवादी क्रांति के बाद माओत्से तुंग ने बाग डोर सम्भाली।50 के दशक में भारत और चीन के सम्बन्ध अपने मधुरतम दौर में थे।दोनों देशों के अनेक नेताओं ने एक दूसरे के देश की यात्रा किया।1954 में भारत ने बौद्ध धर्म के पांच सिद्धांतों के आधार पर विदेश निति के पंचशील के सिद्धांत की घोषणा किया।जिसे 25 जून 1954 को चीनी प्रधान मंत्री चाउ एन लाई ने भारत यात्रा के समय स्वीकार किया।किन्तु उसी समय चीनी ख़ुफ़िया एजेंसी से भारत की सामरिक तैयारी की जानकारी उन्हें मिल गई थी।साथ ही हमारे तत्कालीन प्रधान मंत्री को शांति का कबूतर उड़ाने के शौक और नोबल शांति पुरस्कार पाने की लालसा ने राष्ट्रीय सुरक्षा की अवहेलना करते हुए चीन द्वारा तिब्बत को कब्ज़े में लेने का विरोध नहीं किया।जिसके परिणाम स्वरूप हमारी सीमा चीन से जुड़ गई।इधर हम लोग हिंदी चीनी भाई भाई के नारों में अभिभूत थे।उसका लाभ उठा कर चीन ने 1962 की सर्दियों में लद्दाख और उत्तर पूर्व की सीमा पर आक्रमण कर बहुत बड़ा भारतीय क्षेत्र अपने कब्ज़े में ले लिया।उसके बाद से चीन ने हमारे पड़ोसी शत्रु देश से घनिष्ठ मित्रता करली।साम्यवादी चीन अपने कठोर अनुशासन की बदौलत आज एक आर्थिक शक्ति बन गया।राजीव गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में तथा बाद में अटल जी के काल में चीन से सम्बन्ध सुधारने की आवश्यकता महसूस की गई।आज भारत चीन के मध्य बड़े पैमाने पर व्यापार होता है।अब यह सत्य है की चीन को भी भारत से अच्छे सम्बन्ध बढ़ाने की आवश्यकता है।इसलिए पाकिस्तान से अधिक निकटता होंने के बाद भी उनको भारत के महत्व पता है।प्रधान मंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से एक अच्छा मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने की जरूरत के आधार पर सत्ता में आने के बाद से ही इस दिशा में प्रयत्न करना शुरू कर अब वे स्वयं चीन यात्रा पर हैं।इस यात्रा से तत्काल पचास वर्ष पूर्व हुई कूटनीतिक त्रुटि यकायक सुधर जाने की सम्भावना तो नही है।किंतु सुधार की दिशा में एक सार्थक कदम जरूर उठाया जा सकता है।

प्रधान मंत्री मोदी की चीन यात्रा

प्रधान मंत्री मोदी चीन यात्रा पर हैं,वो दोनों देशों के मध्य सहयोग बढ़ाने का प्रयत्न कर रहें हैं जिसका प्रारम्भ उनके पहले राजीव गांधी,अटल बिहारी वाजपेयी और डा0मनमोहन सिंह ने भी किया जो राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा के लिये अनिवार्य है क्यों कि चीन एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी शक्ति है।जिसने आर्थिक विकास के पूर्व अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाने और परमाणु शक्ति अर्जित करने के बाद किया।सामरिक क्षमता बढ़ाने के बाद ही आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।अटल जी के शासन काल में भारत भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हो चूका है।विगत वर्षों में भारत ने अन्तर महाद्वीप बैलिस्टिक मिसाइल के क्षेत्र में भी वांछित प्रगति हासिल करने में सफल रहा है।ऐसे में आर्थिक विकास करने के लिये हमे चीन का अनुकरण करना चाहिये।चीन ने 30 वर्ष पहले शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू किया था।आज उनके शहर दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए हैं।चीन के विकास की गति भारत के लिये अनुकरणीय है।यदि हमलोग पुरानी बातों पर ही रुके रहे तो हम उनसे प्रतियोगिता नहीं कर पाएंगे।इसलिये वो लोग आज भी 62 के चीनी आक्रमण से आहत हैं उनसे मेरा कहना है कि चीन से पराजय के दोषी हमारा तात्कालिक नेतृत्व जिम्मेदार था।सोचिये यदि चीन ने आक्रमण न किया होता तो हम 1965 में पाकिस्तान से युद्ध न जीत पाये होते।आप सब की जानकारी के लिये बताऊ की भारत 1947 में आज़ाद हुआ उसी तरह 1949 में नवीन चीन अस्तित्व में आया।देखते देखते उसने अपनी सामरिक और आर्थिक सम्पन्नता हासिल करने में सफल हुआ।1962 की पराजय में भारत के बड़े भू भाग को युद्ध से नही जीत जा सकता।होशियारी और नीति यही कहती है कि धैर्य से चीन के साथ सम्बन्धों को सुधारते हुए विकास हेतु सहयोग लेना होगा।

वर्तमान लोकसभा में विपक्ष देश की प्रगति में बाधक

वर्तमान लोकसभा में विपक्ष देश की प्रगति में बाधक:-
1952 में पहली लोकसभा के बाद से अबतक 2014 के वर्तमान लोकसभा के इतिहास का पनरावलोकन करने पर हम पाते हैं कि वर्तमान लोकसभा के पूर्व तक की लोकसभा में विपक्ष के नेताओं में आचार्य कृपलानी,डा0राम मनोहर लोहिया,आचार्य नरेंद्र देव,श्रीपाद अमृत डांगे,अटल बिहारी वाजपेयी,मधु लिमये,लाल कृष्ण अडवाणी जैसे गम्भीर नेता थे।जिन्होंने देश की संसद पर अपनी योग्यता और विद्वत्ता की छाप छोड़ी।किन्तु आज जिस प्रकार का नेतृत्व विपक्ष में बैठा है उसकी योग्यता के विषय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है परन्तु उसके साथ जिस भाषा का प्रयोग किया जा रहा है वह आपत्तिजनक भी है।आज विपक्ष में कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी,मल्लिकार्जुन खड़गे,सोनिया गांधी और सपा के नेता मुलायम सिंह यादव हैं इनमे से कोई भी ऐसा नेता नहीं जो पुरानी नेताओं के इर्द गिर्द भी नही है।जिसके कारण सत्ता पक्ष के ऊपर एक अतिरिक्त दायित्व है।विपक्ष हताशा से बाहर न आकर अनर्गल तरीके से विकास की गति को बाधित कर रहा है।जो जनहित में नहीं है।