Tuesday, December 1, 2009

चीन का भारतीय सीमा में हस्तक्षेप

जैसा की मैंने भारत सरकार को चीन से सतर्क रहने के लिए अपने पिछले पोस्ट में लिखा था वही कल प्रत्यक्ष रूप से लद्दाख में हुआ ,कल चीन की सेना के दस्ते ने भारतीय सीमा में अंदर घुस कर सीमा पर भारत सरकार द्वारा एक सड़क का निर्माण कराया जा रहा था ,उसे इन सैनिकों ने जबरदस्ती से रोक दिया गयाजिसका भारतीय सरकार ने अभी तक कोई तो विरोध किया और ही सड़क निर्माण का काम करने वाले मजदूरों और कर्मियों को किसी प्रकार की सुरक्षा मुहैया किया ,जो सरकार की अक्षमता का स्पष्ट उदाहरण हैमैंने अपने पिछले लेख में यह भी लिखा था की चीन पहले किसी भी पड़ोसी देश की किसी भू -भाग पर पहले विवाद करता है और बाद में वहां हस्तक्षेप कर देता है,यही घटना कल लद्दाख में घटित हुई ,पहले से ही चीन ने अरुणांचल प्रदेश के तवांग और कश्मीर से जुड़े लद्दाख पर अपना अधिकार जाता कर विवादित क्षेत्र बनाया और अब वहां सीधा हस्तक्षेप कर दिया .हमारी सरकार कब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों पर इस तरह का नकारात्मक रवैया अपनाती रहेगी

Saturday, November 28, 2009

क्या हम २६/११ से कुछ सबक लेंगे

इस वर्ष २६/११ /२००८ की घटना के पूरे एक वर्ष होने पर क्या देश ने कुछ सबक लिया या नहीं इस विषय पर मैं आज आप से चर्चा करना चाहता हूँ या यूँ कहिये की बात कहना चाहता हूँ । हमने घटना की बरसी के दिन मोमबत्तियां जलाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी परन्तु क्या देश हम किसी भी प्रकार की उसी तरह की भविष्य में होने वाली घटना का मुकाबला करने को तैयार हैं ,इस बात की परख करनी होगी,इस प्रकार की किसी तैयारी में देश की सरकार की इच्छा शक्ति का दृढ़ होना और उसकी जानकारी देना सरकार का दायित्व हैं । यदि हम विगत पूरे वर्ष सरकार के द्वारा किए गए प्रयासों को देखें तो हम पाएंगे की सामान्यतया ऐसे मौकों पर केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को जिम्मेदार ठहराकर अपना दमन साफ़ कर लेती है परन्तु पूरे वर्ष भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से मुंबई हमले में शामिल पाकिस्तानी एजेंसियों के ऊपर कार्यवाही की दरखास्त करता रहा और पाकिस्तान की सरकार ने कभी अजहर मसूद और कभी सईद आतंकवाद में शामिल मानते हुए गिरफ्तार किया और बाद में पाकिस्तान की न्यायपालिका ने इन्हे बिना सबूत के इनकी गिरफ़्तारी /नज़रबंदी को गैर कानूनी ठहराते हुए इन खूंखार आतंकवादियों को आज़ाद कर दिया गया । इन सबसे यह साबित होता है की अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों से निपटने में देश की सरकार नाकामयाब सिद्ध हुई । शायद बहुत कठोर कार्यवाही करने की इच्छा शक्ति की कमी इसका कारण है.बार बार सरकार पड़ोसी देश में पाले और पोसे जा रहे आतंकवाद के ठेकेदारों को रोकने में असफल रही है .यहाँ यह बताना उचित होगा की पाकिस्तान में शासन करने वालों में भी इतना बल नहीं है जो इन सबको रोक सके। भारत सरकार ने परमाणु समझौता अमेरिका से किया जिसके आधार पर भी वह पाकिस्तान पर दबाव बना पाने में सफल हो सका जो निश्चित रूप से सरकार की इच्छा शक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगता है।
अब यहाँ घरेलू मोर्चे पर देखे तो हम पाते हैं की जिस मुंबई में इतनी बड़ी त्रासदी हुई उसी मुंबई में घटना के बाद मनसे के लोगों ने उत्तर भारतीयों के विरुद्ध मोर्चा खोला और उनकी इस कार्यवाही पर महाराष्ट की सरकार ने कोई ठोस कार्यवाही नहीं किया जिससे मुंबई में रहने वाले समस्त भारतवासी को यह विश्वास दिला सकने में असमर्थ रही। उल्लेखनीय यह है की महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है ।
दूसरी तरफ़ देश में सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने की जगह भारत सरकार ने सत्रह साल की कवायद के बाद लिब्राहम आयोग की रिपोर्ट जरी कर अपने राजनीतिक दुश्मनों को मात देने का प्रयास जितनी दृढ़ता से किया उतना प्रधान मंत्री महोदय के आतंकवाद से लड़ने की कोशिश में दम नहीं दिखा रहे हैं।

Wednesday, November 18, 2009

भारत को चीन की भावी योजना से सतर्कता आवश्यक

चीन आज विश्व के पाँच महा शक्तियों में सिर्फ़ एक होकर विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले एशिया महाद्वीप के राष्टों के लिए चुनौती बन कर सामने आया है ,एक तरफ़ उसकी सामरिक मह्त्वाकांछा दूसरी तरफ़ आर्थिक महाशक्ति बंनने की है ,चीनी नेतृत्त्व इन दोनों को शीघ्रातिशीघ्र पाने के लिए प्रयत्न शील हैं ,उनके इस कार्य में आने वाले सभी देश चाहे अमेरिका हो रूस हो अथवा भारत या जापान सभी की रणनीति को विफल करने का उनके द्वारा चतुर्दिक प्रयास बहुत प्रयत्न के साथ किया जा रहा है,चीन के इस प्रयास में जो भी देश अडंगा लगाने का प्रयास करेगा उससे वह पूरी तरह से निपट लेने के लिए तैयारी कर रहा हैइसी योजना के अंतर्गत उसने भारत के अरुणांचल राज्य स्थित तवांग को चीन का भाग घोषित करते हुए भारत सरकार से अपना विरोध दर्ज किया ,दूसरी तरफ़ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के हिस्से में पाकिस्तान के साथ मिलकर कई विकास योजना में सहयोग कर रहा है जिससे भविष्य में वह भारत को घेरने का प्रयास कर सकेउधर सूदूर पूर्व में वह जापान के आर्थिक आधिपत्य को तोड़ने का प्रयास कर रहा है,जापान को रोकने का तात्पर्य अमरीका की आर्थिक दशा को प्रभावित करना हैचीन द्वारा रूस के राजनीतिक और सामरिक प्रभाव कम करने के लिए मध्य एशिया के देशों पर भी लगातार दबाव बना रहा है
चीन की सभी नीतियों पर भारत को कड़ी और पैनी दृष्टि सदैव बनाये रखते हुए सतर्कता की आवश्यकता है

Saturday, October 3, 2009

चीन से भारत को सतर्क रहना जरूरी है

विगत कई महीनों से चीनी सरकार का रवैया भारत के प्रति ज्यादा विद्वेष पूर्ण हो गया है,चीनी नेतृत्त्व कई तरह से अपने मनसूबे अपनी व्यव्हार से दिखा चुका है पहले उसने अरुणांचल के तवांग सहित लगभग पूरे अरुणांचल प्रदेश को अपना मानते हुए चीन के नक्शे में प्रर्दशित करता रहा है उसके सम्बन्ध में भारत और चीन की सरकारों के बीच सीमा विवाद के विषय में अनेकों बैठकें हो गयी किंतु चीन की सरकार अपने विस्तारवादी नीति से हटने को तैयार नही है ,प्रकारांतर से चीनी सरकार का भारत विरोधी रवैया बरकरार है ,अब तो भारत स्थित चीनी दूतावास ने तो हद ही पर कर दी जब दूतावास ने बिना भारतीय पासपोर्ट के कश्मीरी नागरिकों को सादे कागज़ पर वीसा जारी करना शुरू कर दिया है ,जिसका स्पष्ट अर्थ यह है की चीन की सरकार कश्मीर को भारत का भाग नहीं मानता है यह एक तरह से भारत के आन्तरिक मामलों में एक प्रकार से हस्तक्षेप है,वर्तमान चीनी नेतृत्त्व के पहले के नेताओं ने भी भारत के विपरीत पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खुला समर्थन देता रहा है । चीन और भारत के मध्य सबसे पहले जनता सरकार के दौरान श्री अटल बिहारी वाजपेयी के विदेश मंत्री की अवधि सीमा और अन्यसहयोग करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ आगे चलकर श्री राजीव गाँधी की चीन यात्रा से कुछ संबंधों में नरमी आयी परन्तु यह एक सच्चाई है चीन भारत के साथ कुछ व्यापारिक समझौते हुए जिसका ज्यादा लाभ चीनी सरकार को अधिक था इस समझौते के परिणामस्वरूप चीनी घटिया उत्पाद भारत आने लगा जिसका दुष्प्रभाव भारतीय लघु उद्योगों पर पड़ा,जिसके कारण भारत सरकार को बहुत से माल के आयात पर रोक लगना पड़ा।
यहाँ यह तथ्य बताना अनिवार्य है की चीन और भारत दोनों ही एशिया महाद्वीप की दो बड़ी आर्थिक ताकतें है किंतु चीन और भारत के मध्य समानता से अधिक असमानता ज्यादा है ,चीन एक साम्यवादी देश है जहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है aur भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है ,चीन ने भारत की तुलना में अधिक सामरिक शक्तिशाली देश है ,उनके पास परमाणु शक्ति भी भारत से बहुत अधिक है ,जहाँ तक मिसाइल तकनीक का प्रश्न है चीन ke पास भारत तक मार करने की क्षमता है,जिसका जिसका प्रदर्शन उसने अपने राष्ट्रीय दिवस की परेड में दिखाया जिसके हिसाब से भारत थल सेना.वायु सेना और नेवी तीनों में भारत की तुलना में बहुत अधिक शक्ति शाली है ,वह कभी भी भारत पर आक्रमण कर सकता है। भारत सरकार और सेना प्रमुख का इस समस्या पर गंभीरता नही दिखाया गया है जो अत्यन्त चिंता जनक बात है।
मैं इस पोस्ट के मध्यम से भारतीय नेतृत्त्व और सरकार का ध्यान इस समस्या पर आकृष्ट करना चाहता हूँ।

Monday, September 28, 2009

राहुल का भारतीय राजनितिक क्षितिज पर उदय का महत्त्व

भारतीय राजनीती में श्री राहुल गाँधी जैसे युवक का उदय प्रवेश कई वर्षों पूर्व अवश्य हुआ था किंतु उनके द्वारा जिस प्रकार की दृढ़ता और गहरा रुझान देश और देश वासियों विशेष रूप से मध्य और निम्न वर्ग के नागरिकों की वास्तविक समस्या को समझने के लिए उनका प्रयास प्रशंसनीय है ,अभी हाल ही में जिस तरह उनके द्वारा अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना उत्तर प्रदेश के अत्यन्त पिछडे जिलों बहराइच,बाराबंकी का दौरा बिना प्रदेश सरकार की सूचना दिए बिना किया उससे उनकी इस उत्कंठा का पता चलता है की गरोबों और किसानों और पिछडे क्षेत्रों की सीधी जानकारी वह प्राप्त करना चाहते हैं जो बिना किसी लग लपेट के हो ,उस हेतु उनका कार्य अत्यन्त सहनीय है ,इस विषय पर प्रदेश सरकार की चिंता अर्थहीन लगती है,जो सरकार ने अपने आगमन की सूचना सरकार को न देने की थी।
सामान्य रूप से अपने देश में जिस तरह से समस्या की जानकारी प्राप्त करने की शासकीय तरीका है वह नौकरशाही के मध्यम से है जो नौकर शाहों की लापरवाह रवैया के कारण सही न होने की वजह से राहुल जी ने जन समस्या से सीधे जुड़ने का प्रयास बहुत बहुत सराहनीय है ,जो आज तक के ६२ वर्षों के इतिहास में विशिष्ट है।
मैं राहुल जी के विरोधियों जो इसे नाटक या नौटंकी कहते हैं उनसे पूछना चाहूँगा की क्या यह नौटंकी उनकी पार्टियों के नेताओं को करने से किसने रोका था।

Sunday, June 21, 2009

देश हित में बी०जे0 पी0 का मजबूत होना आवश्यक है

लोकसभा के चुनाव में बी० जे० पी० की हार के बाद जिस प्रकार पार्टी में मतभेद नेताओं में उभर कर आए हैं ,इन्हे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मिल बैठ कर हल करना होगा क्योंकि यदि पार्टी पहले अपने आप को संभाल नही पाई तो आगे चलकर पार्टी और अधिक कमजोर होगी जो अपने आप ही राष्ट्र हित में नहीं हैमैंने अपने पिछले पोस्टों में से किसी एक पोस्ट में लिखा है की श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा १९९९ के चुनाव के पूर्व राष्ट्रीय पैमाने पर विभिन्न पार्टियों से गठबंधन कर राजग को मजबूत करते हुए चुनाव में विजयश्री पाई थी ,उनके बाद पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना दृढ़ गठबंधन बनने में सफल नही रही साथ ही पार्टी का चुनाव में नकारात्मक प्रचार उसकी हार का सबसे मुख्य कारण है ,यह पराजय निश्चित रूप से नेतृत्त्व की पराजय है और उसके साथ ही पार्टी के वर्ग द्वारा चुनाव के मध्य नरेन्द्र मोदी को अगले प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना दूसरी बड़ी गलती थी ,तीसरा हार का कारण बी० जे० पी द्वारा वरुण गाँधी के बयान से अपने को अलग करना आम भारतीय मतदाता को एकदम पसंद नहीं आयाकिंतु इतनी सी बात को समझने पार्टी के वरिष्ठ नेता लोगों को बात क्यो समझ में नहीं आरही है जो समझ के परे है ,ऐसा लगता है की पार्टी के नेता इस संकट की घड़ी में अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं जो बहुत निराशा जनक बात है,आज आवश्यकता तो इस बात की है की पार्टी के नेता गण अपने आपसी स्वार्थ और मतभेद भुलाकर पार्टी को मजबूत करने का सक्रिय प्रयास करें
जिनपर मैं नीचे उल्लेख कर रहा हूँ :-
-सर्व प्रथम पार्टी को अपना सामाजिक विकास करने का प्रयत्न करना होगा ,इस क्रम में पार्टी को अपना जनाधार बढाने के लिए देश की जातियों और सभी धर्म अथवा आस्था के लोगों में अपनी पैठ बनाने का काम करना होगा जिससे अगले किसी भी चुनाव चाहे किसी प्रान्त की विधान सभा का चुनाव हो अथवा अगली लोक सभा के चुनाव में पार्टी देश के समक्ष काग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में सामने अपनी जगह बनाने में सफल होदेश में पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी मुस्लिम मतों के आधार पर विजयी होकर हिन्दू बहुसंख्यक मतदाता के मतों से विजयी हुई जो एक सच्चाई है इसे लेकर पार्टी अपने भ्रम को जितनी जल्दी दूर कर लेगी उतनी ही जल्दी लाभ की स्थिति में आने में सफल होगीदेश का सामान्य हिन्दू आज भी बहुत ज्यादा सहिष्णु है और वह लडाई - झगडे की राजनीती से हमेशा दूर रहा है ,इसी कारण उस मतदाता ने भाजपा के खास तौर पर नरेन्द्र मोदी और वरुण गाँधी के हिंदुत्व को अस्वीकार कर कांग्रेस जैसी सहिष्णु पार्टी को मत दियाइस बात को पार्टी नेतृत्त्व को गाँठ बाँध लेनी होगी तभी पार्टी जनाधार बढाने में सफल हो सकती है अन्यथा परिणाम इस चुनाव के परिणाम से भिन्न नही पाएंगे
- पार्टी को ६२ साल के बाद भी दक्षिण के राज्य तमिलनाडु,आन्ध्र प्रदेश और केरल,पूर्व में उडीसा और पश्चिम बंगाल था आसाम जैसे राज्यों में अपनी जड़े ज़माने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु परिणाम शून्य के इर्द गिर्द ही रहा ,इसलिए इन राज्यों में अपने संगठन के आधार को मजबूती प्रदान करते हुए दूसरी सक्षम सहयोगी राजनीतिक पार्टी से अभी से सहयोग करने के लिए आधार तैयार करना जरूरी है, किंतु यह पहले कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा का पूर्णतया त्याग करने के बाद ही सम्भव है, साथ - साथ महाराष्ट्र में अपने बल पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए शिवसेना के प्रभाव के क्षेत्रों में अपनी पार्टी का संगठन मजबूत करना होगाइस चुनाव में हमने देखा की पार्टी को शिवसेना के साथ गठबंधन के कारण ही मुंबई और आसपास के लगभग १० लोकसभा की सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं के कारण हार का सामना करना पड़ा
-भाजपा कांग्रेस पार्टी के आलावा दूसरी बड़ी पार्टी है जो उसका विकल्प बनने की क्षमता रखती है अतः यह समय और देश हित की मांग है की पार्टी मजबूत विकल्प बनकर उभरे , उल्लेखनीय है की देश के केन्द्रीय सत्ता में आए बिना पार्टी अपने किन्ही भी सिद्धांत को लागू कराने में सफल नहीं हो सकेगी
४- पार्टी और साथ ही मात्रि संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी जिसके जनाधार में भी गिरावट आयी है उसे भी अपने सांगठनिक ढांचे को दृढ़ बनाने के लिए सक्रीय प्रयास करना होगा ,यदि संगठन के लोग गौर करें तो उन्हें स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है कि संगठन में नए कार्यकर्त्ता नहीं जुड़ रहे हैं ,संघ के अन्य अनुसांगिक संगठन जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् जैसे संगठन भी नए कार्यकर्ताओं का अभाव झेल रहें हैं और विश्वविद्यालयों में ये अपने पक्ष में वातावरण बनाने में सफल नहीं हो पाराहे है ,रामजन्म भूमि प्रकरण में पार्टी द्वारा किसी निष्कर्ष पर न पहुचने के कारण हिन्दू संत समाज में विश्व हिन्दू परिषद् भी अब पहले जैसा मजबूत नहीं रह गया है जिसके कारण पार्टी के सहयोगी संगठन भी अब पहले जैसा प्रभाव डालने में सक्षम नहीं रह गए हैं ,जिस पर संघ को भी एक बार पुनर्विचार जरूरी होगया है।

Saturday, June 13, 2009

महिला आरक्षण देश की प्रगति के लिए अनिवार्य

केन्द्र की वर्तमान सरकार द्वारा महिला आरक्षण के मामले को अपने १०० दिनों की योजना में सम्मिलित कर अपने पिछली सरकार के संकल्पों को पूरा करने के पक्के इरादे को राष्ट्रपति द्वारा संसद के संयुक्त सदन के अभिभाषण के माध्यम से जाहिर कर दिया है ,यह कदम देश के सर्वांगीण विकास के लिए विगत् २३ वर्षों से अपेक्षित था । सर्व प्रथम महिला आरक्षण का बिल संसद में श्री देवगौड़ा की सरकार के कार्यकाल में दिनांक १२-०९-१९९६ को प्रस्तुत किया गया था किंतु संयुक्त मोर्चा सरकार में मत वैभिन्यता वजह से से महिला आरक्षण को गौड़ मानते हुए इसे छोड़ दिया ,दूसरी बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने वर्ष १९९८ में सदन में बिल पेश किया किंतु तभी लोक सभा भंग होने के कारण बिल अधर में लटक गया ,बाद में श्री वाजपेयी की सरकार द्वारा पुनः २३ दिसम्बर १९९४ को बिल का मसौदा लोक सभा में प्रस्तुत हुआ जिसका मुखर विरोध श्री मुलायम सिंह और श्री लालू प्रसाद द्वारा किया गया ,सरकार द्वारा सभी दलों में बिल पर सहमती बनाने का प्रयास किया गया किंतु श्री वाजपेयी को सफलता प्राप्त नहीं हो सकी । सहमती में श्री शरद यादव,,श्री मुलायम सिंह और श्री लालू यादव आदि माडल समर्थक ३३ प्रतिशत महिला आरक्षण कोटे में दलित,पिछडी और अल्पसंख्यक का आरक्षण चाहती थी। महिला आरक्षण की स्थाई संसदीय समिति के अध्यक्ष डा० नल चिनपन द्वारा देश की उन सीटों की पहचान करने का प्रयास किया जहाँ महिलाएं औसत में अधिक हो, जिनका आरक्षण किया जा सके । इसी क्रम में पिछली सरकार ने अपने अन्तिम सत्र के पूर्व विधेयक लोक सभा के बजाय राज्य सभा में प्रतुत किया गया ,जो एक बुद्धिमानी पूर्ण कार्य था ,यदि मामला लोक सभा में प्रस्तुत होता तो १४ वीं लोक सभा के बाद प्रस्तुत बिल १५ वीं लोक सभा में एक नही होता। यहाँ मैं बताना चाहता हूँ की देश में आज जब हम २१ वीं सदी में प्रवेश कर रहें है तब देश की आधी जनसंख्य को राजनीती से अलग करना उचित नहीं है और उन्हें समानता के आधार पर उनकी जनसँख्या के अनुरूप लगभग पचास प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए जिस सिद्धांत को आरक्षण के मामलों में आधार बन गया है "जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी ",इसलिए सिद्धान्तः तो ५० प्रतिशत आरक्षण होना था किंतु सरकार ने प्रारभिक रूप से ३३ प्रतिशत का मन बना लिया है जिसका स्वागत करना चाहिए ।