Wednesday, April 29, 2009

तीसरे चरण का मतदान ३० अप्रैल को लेकिन इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ाना जरूरी है

तीसरे चरण का मतदान कल ३० अप्रैल को होना है ,इसमे कुल १०७ लोकसभा सदस्यों के लिए होना है जिसमे उत्तर प्रदेश के लखनऊ , कानपुर , रायबरेली,महाराष्ट्र में मुंबई ,लगभग पूरा गुजरात और कुछ मध्य प्रदेश के लोक सभा और कर्नाटक के सभी अवशेष क्षेत्रों के चुनाव होने है।इस चरण के चुनाव में बी०जे०पी० के प्रधान मंत्री के दावेदार श्री अडवानी एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी के भाग्य का फ़ैसला जनता को करना है। वैसे तो इन दोनों ही नेताओं के जीतने में कोई संदेह नही है परन्तु इन दोनों ही शीर्ष नेताओं से इस चुनाव में बहुत अधिक अपेक्षा थी कि चुनाव के अवसर पर अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर खुली बहस हो किंतु चुनाव के पूरे परिदृश्य को देखने के बाद बहुत निराशा हुई ,बड़े मुद्दे यथावत धरे के धरे रहे किंतु राष्ट्रीय पार्टियों में बकवास और व्यक्तिगत आक्षेप के अलावा कोई सकारात्मक बहस नहीं हुई , पुराने मामले और कमजोर प्रधान मंत्री की बात का कोई औचित्य न होने के बाद भी यही बातें हुई भारतीय जनता पार्टी ने श्री मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधान मंत्री के विशेषण से नवाजा तो श्रीमती सोनिया गाँधी ने श्री लाल कृष्ण अडवानी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का नौकर कह डाला और श्री राहुल गाँधी जैसे नौजवान और उभरते नेता ने तो हद ही कर दी अडवानी जी को कंधार कांड का अभियुक्त तक बना दिया ,जिसकी अपेक्षा उनसे नही की गई थी।पहले के राजनीतिग्य चुनावी भाषणों में भी वरिष्ठ और कनिष्ठ का भाव रखते थे । अब जब बड़े राजनितिक दलों के ये हाल थे तो छोटे दलों और क्षेत्रीय दलों से कोई अपेक्षा पहले भी नही थी । किंतु इन हालत में जब देश के राजनेता अपने समुचित दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन न कर रहे हो तब देश की सुबुद्ध जनता को चुप नही बैठना चाहिए और तब उनका दायित्व और भी बढ़ जाता है ,उसे जो भी योग्य प्रत्याशी हो और खास तौर पर प्रत्याशी दागी और दल बदलू न हो साथ ही जातिवाद और सांप्रदायिकता जैसे दूषित विचार का त्याग कर अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह बड़ी संख्या में मतदान केन्द्रों पर जाकर करना है अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करना होगा ।
यदि हम सबने ऊपर लिखे भाव से, अपने अधिकार से अधिक मतदान कार्य को दायित्व मान कर प्रयोग किए जाने के बाद अवश्य देश के नेताओं को एक सबक सिखाने के साथ अपने लिए नई व्यवस्था का सृजन करने में हम सफल होंगे। कृपया अपना उत्साह बनाये रखे।

Saturday, April 25, 2009

पहले दो चरणों के मतदान से निराशा

दोस्तों, इस लोकसभा के आम निर्वाचन में अधिक संख्या में मतदान के लिए अनेक स्वयं सेवी संस्थाओं ने और इलेक्ट्रानिक मीडिया तथा समाचार पत्रों ने जिस प्रकार जन जागरण का अभियान चलाया उससे यह एक आम तौर पर अनुमान लगाया जा रहा था कि इस चुनाव में अबतक के चुनावों से अधिक संख्या में मतदान होगा किंतु परिणाम निराशाजनक सामने आया। दक्षिण ,पूर्वी और पश्चिमी राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश ,बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मतदान अपेक्षा से कम हुए, यह एक बहुत गंभीर विचारणीय बात है ।इसके कारणों पर विचार किया जन अपेक्षित है और यह विचार उच्च स्तर पर भी किए जाने का विषय है ,यहाँ यह उल्लेख किया जन उचित है कि इन तीन राज्यों से बहुत अधिक लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हो कर आते हैं। अबतक प्राप्त तथ्यों से यह पता चलता है कि विगत कई वर्षों से इन राज्यों में अत्यधिक तापमान बढ़ जाने और गावों में किसानों द्वारा फसल की कटाई का काम चलने के कारण किसानों और निम्न और मध्य वर्ग का मतदाता मताधिकार का प्रयोग करने मतदान स्थल तक आने में असमर्थ था ,दूसरा कारण आम नागरिक का शासन व्यवस्था और राजनितिक प्रक्रिया में अविश्वास का होना जाहिर होता है । चुनाव में राजनितिक दलों द्वारा उचित ढंग से वास्तविक मुद्दे न उठाये जाने और मीडिया व् शासन के उच्चतम शिखर द्वारा बार -बार तथ्यों से आम जनता को गुमराह करने का प्रयास किया जन भी महत्वपूर्ण कारण है,उदहारण के तौर पर देश में बढती महगाई के सम्बन्ध में प्रधान मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय मंदी अथवा विश्वव्यापी मंदी को कारण बताया और देश पर विश्वव्यापी मंदी का कम होने को अपने सरकार की उपलब्धियां बताते हुए अपने इसका श्रेय लेलिया गया ,जबकि वास्तविकता यह है की देश में आम तौर पर यह धारणा लोगों की है की जितनी चादर हो उतनी पैर फैलाना चाहिए,के आधार पर देश मंदी के भीषण दुस्प्रभावों से बचने में आंशिक रूप से सफल रहा,यदि पाश्चत्य आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत जहाँ हर व्यक्ति बैंकों के क्रेडिट कार्ड पर निर्भर करता है तथा बैंकों के मंदी की मार की चक्की में दब जाने के कारण आत्म हत्या तक करने को मजबूर होजाता है,इस देश में इस प्रकार की व्यवस्था से बच निकलने का आधार सिर्फ़ और सिर्फ़ पुरानी सोच का होना कारण है । जिस पर सरकार ने अपनी पीठ ख़ुद थापथपाली। iसी तरह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी सरकार ने आम जनता को गुमराह करने और कंधार के मामले पर नई बहस कर अपनी कमी छुपाने का काम किया।
खैर उपर्युक्त कारणों का सही तरह से मूल्यांकन होना चाहिए किंतु सबसे अधिक मतदान कमी में यावा वर्ग का योगदान उचित नही हुआ जिससे ज्यादा तकलीफ हुई,चलिए अभी पूरा चुनाव आगे तीन चरणों का शेष है शायद कुछ अच्छे परिणाम आए ,इस नोट के साथ आज का पोस्ट समाप्त कर रहा हूँ।

Wednesday, April 22, 2009

राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में कटुता का आधिक्य अनुचित

कल दूसरे चरण का मतदान पूरे देश में होना है किंतु ज्यों -ज्यों चुनाव आगे बढ़ रहा है त्यों-त्यों राजनितिक दलों में कटुता प्रतिद्वंदिता से बहुत ज्यादा अधिक हो गई है,बात प्रतिद्वंदिता के स्तर तक उचित है किंतु उससे अधिक यह वैमनस्यता का स्वरुप लेता जारहा है जो अनुचित है । यदि देखे तो सही मायनों में प्रत्येक दल का अस्तित्व देश हित के कारण है ,हर दल के सिद्धांत राष्ट्र हित के इर्द गिर्द ही होने चाहिए किंतु सत्ता का युद्ध देश में कुछ जरूरत से ज्यादा ही कटु होता जा रहा है । देश की सभी बड़ी छोटी और क्षेत्रीय सभी दल एक दुसरे के विरुद्ध विष वमन कर रहे है,यह इस हद तक पहुच गया है की पार्टियों के शीर्ष नेता एक दुसरे पर व्यक्तिगत स्तर पर आकर बयान दे रहे हैं ,ऐसा लगरहा है की मर्यादा समाप्त हो गई है ,प्रधान मंत्री,लोक सभा के प्रतिपक्ष के नेता पार्टी के अध्यक्ष सभी घिनौना आरोप लगा रहे हैं ,जब की इसी देश में गीता का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने दिया था जिसके अनुसार युद्ध सदैव अच्छाई और बुरे के मध्य होता है और सत्य और धर्म के लिए शास्त्र उठाने का आवाहन किया गया किंतु युद्ध के भी कुछ नियम होते हैं की शत्रु के भी कमर के नीचे वार नही किया जाता था किंतु देश के वर्तमान नेताओं ने सारी मर्यादायों का एक तरह से परित्याग कर दिया है ,जो देश के लोकतंत्र के भविष्य के लिए अच्छा नही है । इसलिए मेरी सभी स्तरीय नेताओं से निवेदन है कि सभी नेता कृपा करके अपनी अपनी मर्यादा में रहते हुए चुनाव को खेल भावना से होने दे ।
इन नेताओं को याद मैं दिलाना चाहता हूँ कि १६ मई को चुनाव के परिणाम आ जायेंगे फिर सभी निर्वाचित सांसदों को एक साथ बैठना होगा और देश की समस्या का समाधान ढूढना होगा,इस कार्य में एक दूसरे से संवाद करना होगा तब यह चुनावी कटुता देशहित के बीच में अवश्य आएगी । मेरा मानना है की देश की शीर्ष दलों में संवाद हीनता अनुचित है । यदि आप कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मुख्य विचार धारा के विषय में में चिंतन करे तब निष्कर्ष यह निकलेगा की दोनों ही पार्टियाँ मध्यम मार्गीय है,आर्थिक विचार धारा भी एक सी है ,केवल नेत्रित्व और पार्टियों के संगठन में चयन की प्रक्रिया की भिन्नता है और दूसरे अनावश्यक रूप से सेकुलर और तथा कथित साम्प्रदायिकता का विरोध दिखाई देता है ,मैं आप से पूछना चाहता हूँ की देश की सत्ता की बागडोर भारतीय जनता पार्टी के पास १९९८ से २००४ तक थी क्या उस समय देश से अल्प संख्यकों को देश से बहार करने या किसी प्रकार से उत्पीडन हुआ ,केवल गुजरात के दंगों को अपवाद स्वरुप से कहा जा सकता है अन्यथा पूरा ६ वर्षों का शासन सामान्य था यदि गुजरात के दंगों की बात होती है तो मैं याद दिलाना चाहता हूँ की श्रीमती इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद सिक्खों के विरुद्ध दिल्ली और समूचे उत्तर भारत में मारे गए सिक्खों की संख्या शायद किसी भी एक संप्रदाय के सबसे अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था यह घटना स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे बड़ी घटना है ,इसके अतिरिक्त अनेक दंगे कांग्रेस के शासन काल में हुए उदाहारण स्वरूप मेरठ ,अलीगढ,वाराणसी,भागलपुर आदि में हुए क्या इन दंगों में अल्पसंख्यकों को क्षति नही पहुचाई गई , इसलिए मैं सेकुलर और साम्प्रदायिकता के फालतू बहस में चुनाव के अतिरिक्त नेताओं और आम नागरिक को ध्यान नहीं देना चाहिए । वैसे नियमतः चुनाव में भी इस बहस में नेताओं को समय बर्बाद न कर सार्थक और देशहित की बहस होनी चाहिए किंतु सार्थक चर्चा का पूरे अबतक हुई चर्चा का आभाव सभी दलों की तरफ से देखने को मिला । उचित हो की स्वस्थ आलोचना और बीती ताहि बिसार दे के साथ बातें हो,सभी दल अपने भविष्य की सार्थक नीतियों जैसे विकास ,अर्थ व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंक वाद और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों आदि पर बहस होनी चाहिए , उम्मीद करता हूँ की अभी चुनाव के पाँच चरणों में से केवल दूसरा चरण कल पूरा होने वाला है और अभी तीन चरण होने शेष हैं शायद अब सभी दलों में वैचारिक और व्यावहारिक परिवर्तन देखने को मिले।

Wednesday, April 15, 2009

लोक सभा निर्वाचन २००९ के दो महत्वपूर्ण मुद्दे

वर्तमान चुनाव के पहले चरण का दिन अब १२ घंटे से कम शेष है,अब जनता का फोकस चुनाव के दो मुद्दे जो मिडिया के मार्फ़त सामने आए है उनमे सबसे पहला मुद्दा विकास का और दूसरा मुद्दा आतंकवाद का है । अब जनता इन दोनों मुद्दों के आधार पर वोट देती है या पहले की तरह जाति,धर्म के आधार पर यह देखने की बात होगी .यदि भारतीय जनतंत्र स्वस्थ्य हुआ होगा तो जनता को निशित रूप से इन्ही दोनों मुद्दों पर अपना फोकस बनाये रखते हुए वोट करना होगा। यदि किसी मतदाता ने अभी तक न सोचा है तो आज और अभी सोच ले । क्यो की उनको यह अबतक के सामाजिक व्यवस्था से अनुभूत कर लिया होगा कि समाज में जिस प्रकार से अर्थ/धन का महत्त्व बढ़ा है उससे समाज में जाति के अलावा आर्थिक स्थिति ने संबंधों का स्थान बना लिया है ,इसी तरह यदि दो समकक्ष आर्थिक रूप से समान व्यक्तियों में भिन्न धर्म होने के बाद भी आपसी मित्रता होती है ,अब एक जाति या एक सम्प्रदाय का होना संबंधों का आधार नही रह गया है ,कम से कम समाज के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों में तो कतई नहीं । पूर्व में भी ऐसा ही था किंतु मिडिया आज की तरह प्रभावी नही था जिसके कारन आम आदमी को ऐसे संबंधों की जानकारी नही हो पति थी । इसलिए आज वास्तविकता के अनुरूप मतदाता को बिना जाति बिरादरी और धर्म और सम्प्रदाय के पचडे में पड़े सीधे सीधे इन्ही दोनों मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए किसी एक राष्ट्रीय दल अथवा उन्ही के गठबंधन को वोट करे इसी में समाज और देश की भलाई है । फालतू सेकुलर और नान सेकुलर के चक्कर में न पड़े । सेकुलर और नान सेकुलर की बात केवल राजनितिक दुराग्रह के अलावा और कुछ भी नही है । जनता से यह आग्रह भी है की जिस भी दल या गठबंधन को वोट करे उसे इतनी संख्या में लोक सभा में जिताए की उस दल को पूरी तरह दायित्व निर्वहन का अवसर मिले और आगे चलकर दल को यह कहने का अवसर न रहे की उसके पास सदन में इतनी संख्या नही जिसके कारण वो अमुक कार्य नही कर सके । सदन में पूर्ण बहुमत के आभाव में अन्य दलों को सौदे बाज़ी का मौका कम से कम जनता इस चुनाव में तो न ही दे ।
लोकतंत्र में बहुत संख्या में दलों का होना बहुत शुभ लक्षण नही है । आवश्यकता अब समान विचार धारा के दलों का आपस में ध्रुवीकरण की है ,जिसे आगे चलकर लोकतंत्र और दृढ़ और सशक्त होगा । प्राय: सभी विकसित देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था में दो या तीन दल से अधिक नही होते हैं,जैसे हम जानते हैं की अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दो पार्टियाँ है ,ब्रिटेन में लेबर,कंजर्वेटिव और लिबरल तीन पार्टियाँ है । इसी तरह जर्मनी और फ्रांस में तीन तीन पार्टियाँ हैं । जैसा की आप जानते हैं की इस देश का संविधान अमेरिका और ब्रिटेन के अंशों से बना हैं ,इसके विपरीत यहाँ दलों की संख्या बहुत अधिक हो जाने की वजह से जनता के मतों का अनावश्यक ढंग से विभाजन होता है और कई बार थोड़े से अधिक वोट पाने वाला प्रत्याशी चुनाव में विजयी हो जाता है । वोट देने के पहले इन बातों का ख्याल आप के जेहन में रहना जरूरी है ।
यहाँ इस पोस्ट में मैं पार्टियों के घोषणा पत्रों का उल्लेख करना चाहूँगा जिनमे जनता को अनेक प्रकार के सुनहरे सपने दिखाए गए हैं ,जैसे जनता की आर्थिक दशा में सुधर करने के वादे,सड़क बनवाने ,अस्पताल,विद्यालय और कृषि में किसानों को अनेक तरह की सुविधा मुहैया कराये जाने की बातें और वादे होते हैं किंतु आज तक जनता ने वास्तविक रूप में पार्टयों से हिसाब नही लिया नतीजा देश की जनता जहाँ के तहां पड़ी है जबकि नातों की आर्थिक स्थिति में अभूतपूर्व सुधार हुआ है ,चुनाव आयोग के निर्देश के बाद अब चुनाव में सभी प्रत्यशियों को अपनी अम्पत्ति चल और अचल सभी का व्यौरा देना पड़ रहा जिससे यह स्पष्ट हो गया है की नेताओं में अधिकांश नेता करोडो की संपत्ति अर्जित किए हैं । जनता को अब इसका हिसाब भी लेने की जरूरत है की इन नेताओं ने यह दौलत कहाँ और कैसे बनाई । जिससे चुनाव लड़ने वाले और सांसदों और विधायकों पर जनता दबाव बना रहे और वे सुचिता से काम करे ।

Sunday, April 12, 2009

तुष्टीकरण की राजनीति का अंत कब होगा

चुनाव सर पर है अब पहले चरण के मतदान में सिर्फ़ दिन बाकी हैं ,इसने बड़े-छोटे सभी नेताओ की नीद हराम कर दी है और चुनावी बौखलाहट में नेता और पार्टियाँ किसी भी हद तक जाने के लिए तत्पर हैं। बौखलाहट सभी पार्टियों में फैली है , छोटी -बड़ी , राष्ट्रीय - क्षेत्रीय सभी दलों में दिखाई दे रही है।जिसके चलते सारी आचारसंहिता समाप्त हो गई ,धर्म निरपेक्ष कहलाने वाले दलों में मुस्लिम तुष्टिकरण का घमासान चल रहा है धर्मनिरपेक्षता की चैम्पियन कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव एवं आन्ध्र प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष ने तो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव को तार तार कर दिया किंतु आश्चर्यजनक रूप से चुनाव आयोग अथवा उन प्रान्तों की सरकारों ने आज तक वरुण गाँधी के मामले में जितनी सख्ती हुई उसके इर्द गिर्द भी कार्यवाही नही किया। आपको याद होगा कि कांग्रेस नीत केन्द्रीय सरकार ने सच्चर आयोग का गठन किया था, जिसने अल्पसंख्यकों को सरकारी सेवा / सेनाओं में भी अल्पसंख्यकों के आरक्षण कि रिपोर्ट दी थी, हमारे प्रधान मंत्री महोदय ने तो देश की समस्त सम्पदा पर आल्पसंख्यकों के पहला अधिकार की बात तक कह दिया था ,आज इसी क्रम में समाजवादी पार्टी ने अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया जिसने अल्पसंख्यकों की एक संस्था में विदेशी छात्रों को शिक्षा पाने के नाम पर कानूनी तौर पर स्टुडेंट वीसा दिए जाने का वादा तक कर दिया है। चुनाव घोषणा पत्र के बहाने सपा तुष्टिकरण का काम कर रही है पाठकों गुजरात, अहमदाबाद, कालूपुर-दरियापुर-नरोडा पाटिया, ग्राहम स्टेंस, कंधमाल आदि के नाम सतत सुने होंगे, लेकिन मराड, मलप्पुरम या मोपला का नाम नहीं सुना होगायही खासियत है नेताओ, वामपंथी और सेकुलर लेखकों और इतिहासकारों की। मीडिया पर जैसा इनका कब्जा रहा है और अभी भी है, उसमें आप प्रफ़ुल्ल बिडवई, कुलदीप नैयर, अरुंधती रॉय, महेश भट्ट जैसों से कभी भीजेहादके विरोध में कोई लेख नहीं पायेंगे,कभी भी इन जैसे लोगों को कश्मीर के पंडितों के पक्ष में बोलते नहीं सुनेंगे, कभी भी सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाने वाली बातें ये लोग नहीं करेंगे, क्योंकि येसेकुलरहैंइन जैसे लोगअंसल प्लाज़ाकी घटना के बारे में बोलेंगे, ये लोग नरोडा पाटिया के बारे में हल्ला मचायेंगे, ये लोग आपको एक खूंखार अपराधी के मानवाधिकार गिनाते रहेंगे, अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी रुकवाने का माहौल बनाने के लिये विदेशों के पाँच सितारा दौरे तक कर डालेंगे।मित्रों तुष्टिकरण का यह खेल देश की आज़ादी के बाद से ही चल रहा है और कब तक चलेगा हम जब तक इन सबको गंभीरता से नही लेंगे और सरकार के चयन में ऐसे ही अन्यमनस्क होकर लापरवाही दिखायेंगे तो इसका परिणाम हमारे बाद हमारी अगली पीढी को भी भुगतना होगा कभी मन कहता है हमसब सोये हुए हैं, जिनको मैं जगाने का प्रयास कर रहा हूँ किंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है हम सोये नही जगे हुए हैं और आपको मालूम ही है की जागे को नही जगाया जाता है।

Friday, April 10, 2009

लोकतंत्र में मतदान की अनिवार्यता की जरूरत है

आज मुझसे किसी अपने मिलने वाले युवक ने कहा कि क्या वोट का बहिष्कार करने का मतदाता को अधिकार चुनाव नियमों में संविधान द्वारा प्राप्त है जिसका उत्तर मैं इस पोस्ट में देना चाहता हूँ ,भारतीय जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार वोट के बहिष्कार का अधिकार कि मान्यता इस अधिनियम में होकर उसका स्वरुप कुछ इस प्रकार है कि यदि मतदाता पोलिंग बूथ पर जाकर पीठासीन अधिकारी के समक्ष यह बात कहे कि चुनाव के लिए जितने भी प्रत्याशी मैदान में हैं वो सभी अयोग्य है और वो इनमे से किसी को भी मत/वोट देना नही चाहता,उस दशा में पीठासीन अधिकारी को एक पुस्तिका में मतदाता का नाम सहित पूरा विवरण लिखकर मतदाता से हस्ताक्षर करेगा। यदि ऐसे मतदाताओं कि संख्या विजयी प्रत्याशी के मत से अधिक होने पर पुन: चुनाव की प्रक्रिया की जाने का उल्लेख है ,यह मैं अपने संज्ञान के आधार पर लिख रहा हूँ ,अब प्रश्न उठता है कि जिस प्रक्रिया का उल्लेख ऊपर किया गया है उसका कोई औचित्य वास्तव में कोई नही है ही इस का कभी उपयोग किया जा सका मेरे मत से जन प्रतिनिधि कानून में वैसे तो कई महत्वपूर्ण संशोधन किया जाना जरूरी है, परन्तु इस देश में स्विट्ज़रलैंड यथा कुछ अन्य योरोपीय देशों जैसा रिकाल(वापस बुलाने )के अधिकार मतदाता को विजयी सांसदों के अब तक के कार्य और व्यवहार को देख लेने के पश्चात् मतदाता को उन्हें वापस बुलाने का मिलना उचित है ,किंतु भारत कि तुलना स्विट्जरलैंड और उस जैसे देशों से नही कि जा सकती जिन देशों में रिकाल का अधिकार मतदाता को प्राप्त है उनकी जनसँख्या बहुत कम और क्षेत्रफल भी कम वाले देश हैं ,इसलिए भारत में इस तरह के परिवर्तन के पहले इसके प्रायोगिक कठिनाइयों को अच्छी तरह जा लेना होगा हमारा देश दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला लोकतंत्र है जो क्षेत्रफल,जनसंख्या,विभिन्न भाषाओँ और विभिन्न सम्प्रदायों का है ,इन विषयों पर विचार कर ही कोई संशोधन किए जाने चाहिए
अब प्रश्न यह होता है कि मतदान का बहिष्कार कि क्या आवश्यकता गयी ,आवश्यकता तो अधिक से अधिक संख्या में मतदान के प्रतिशत को बढ़ने और जागरूक मतदाता की तरह मतदान करने की है और मतदान के पहले सर्वथा सबसे योग्य प्रत्याशी को वोट देने की है किंतु साथ ही यह भी देखना जरूरी है कि प्रत्याशी अपराधी,दलबदलू,और क्षेत्रीय पार्टी का हो ,अन्यथा आप के वोट का सौदा पार्टी के मुखिया द्वारा अपने व्यक्तिगत हित में आपके दिए मत का दुरुपयोग कर लेगा ,परोक्ष रूप से पार्टी का सबसे बड़ा नेता जो एक प्रकारसे पार्टी का अधिनायक होता है,के हाथ हमने आने वाले पाँच साल सौप दियाआपको इस बात से सतर्क रहना होगा ।आज देश की सभी क्षेत्रीय पार्टियाँ केवल जातिवादी आधार पर बनाई गयी ,इसका उदहारण उत्तर प्रदेश से देखना शुरू करे तो हम पायेंगे की समाजवादी पार्टी का गठन जब किया तो उसका नाम समाजवादी पार्टी जरूर रखा किंतु यह पार्टी पुरानी स्वराम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली पार्टी नही है ,बल्कि यह पार्टी केवल जाति विशेष के नाम पर श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा बनाई . किंतु उनका हित और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पार्टी बनाये जाने की जरूरत होने की वजह से बनी ,अन्यथा तब जनता दल जो तब स्व० विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में थी और मा० मुलायम सिंह जी उसी पार्टी के प्रदेश में मुख्या मंत्री रह चुके थे ,किन कारणों से नयी पार्टी के गठन की आवश्यकता थी ,इसी तरह से श्री अजीत सिंह जी ने जनता दल से केवल जातिगत वोटों के आधार पर पुँरानी लोकदल को पुनर्जीवित किया किया इनका भी अलग पार्टी बनाने का कारण आप सब जानते ही हैं ,अपना दल पार्टी का गठन भी केवल जाति विशेष के मत के आसरे है किंतु दुर्भाग्य से इस पार्टी के स्वामी श्री सोनेलाल पटेल को जनता ने गौरवान्वित नही किया ,जिसके कारण पार्टी की दशा सोचनीय बनी है किंतु लोकतंत्र का अहित अच्छे प्रत्याशी का वोट काटकर अवश्य कर रहे हैं ,इसी तरह से बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और श्री लालू प्रसाद जी और लोकतांत्रिक जनता पार्टी श्री राम विलास पासवान की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और जातिगत वोटों के ध्रुवीकरण के इरादे से बनी और इनके परिणाम प्रदेश की भोली भाली जनता को भुगतना पड़ाकभी फिर क्षेत्रीय दलों के भारत के अन्य प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों पर चर्चा होगीफिलहाल तो इस लोक सभा के चुनाव में सभी पाठकों से शत प्रतिशत मतदान करने की महती अपेक्षा है
कल मैंने इसी विषय पर श्री सूर्य कुमार पांडे की कविता का उल्लेख किया था ,आशा करता हूँ की आप सब को पसंद आयी होगी और देश को यह दिखा दे कि हम सब अब जागरूक होगये हैं आईये हमसब यह उदघोष करे : -
"अबकी जनता जागी है और परिवर्तन की बारी है "

Thursday, April 9, 2009

जनता से केवल उचित प्रत्याशी के लिए वोट देने का निवेदन

वर्तमान चुनाव का पहला दौर १६ अप्रैल से शुरू हो रहा है ,चुनाव में अनेकों मुद्दे है पर देश की सुरक्षा के लिए आतंकवाद और देश की अर्थ व्यवस्था का मुद्दा सबसे अहम् है ,जिसके लिए जनता को सभी पार्टियों के ट्रैक रिकार्ड को देखना और समझना होगा । हमको प्रत्याशी के चयन के लिए कई बातों पर गौर देना होगा। इसमे सबसे पहले हमें देखना होगा की प्रत्याशी दल -बदलू न हो,दूसरी उसमें जन सेवा की भावना हो,तीसरी वह अवसरवादी न हो ।इन सभी के आधार पर प्रत्याशी का मूल्यांकन करने,उसके बाद ही आप उसी प्रत्याशी को वोट दे जिसे इन कसौटियों पर आप खरा पाए , इस सिलसिले में मुझे श्री सूर्य कुमार पांडे,व्यंगकार की इसी चुनाव के सिलसिले में एक रचना बहुत पसंद आई जिसका का उद्धरण नीचे देरहा हूँ : -
चमचों की सुने ,सपने विकास के बुने
जो बाद इलेक्शन भी आए,सूरत पब्लिक को धिख्लाये ।।
जो नकली मरहम नही लगाये ,मुझ वोटर के घावों में,
मैं उसको अपना वोट करूंगा,अबकी चुनाव में,
जनसेवा जिसकी टेक रहे ,जो वचन कर्म में एक रहे,
जो रहा नही अवसरवादी,जो हो दल बदल का आदी,
जो यदा कदा ही सही खड़ा हो,दुःख सुख और अभावों में,
मैं उसको अपना वोट करूंगा अबकी बार चुनावों में,
पार्टियाँ कई वे ही चहरे , सब ऊँचे कलाकार ठहरे,
इनके वायदे चुनावी सब,आऊंगा नही छलावों में,
मैं सोच समझकर वोट करूंगा,अबकी बार चुनावों में
आज बस इतना ही आगे अगली पोस्ट में

Tuesday, April 7, 2009

चुनाव के दौरान नेताओं की बेलौस बयानबाजी

लोकतंत्र में जनता के पास नेताओं को कम से कम चुनाव के लिए जाना पड़ता है , नेता अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए जाते हैं उसका उद्देश्य अपने पिछले किए कामों से क्षेत्र की जनता को अवगत कराने के अलावा जनता का विश्वास बना रहे इसके लिए अपने भविष्य में किए जाने वाले कामों का उल्लेख करते हैं ,साथ ही अपने विपक्षियों की आलोचना करते हैं किंतु विगत कुछ समय से नेताओं के वाणी पर संयम का अभाव देखने को मिल रहा है,जो लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण नही है । आलोचना का लोकतंत्र में स्थान प्राप्त है परन्तु इस कार्य में उन्हें भाषणों में संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए । अभी हाल में बिहार के किशनगंज में अपने प्रत्याशी के प्रचार में श्री लालू प्रसाद ने श्री वरुण गाँधी के पीलीभीत में पिछले बयान के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के समक्ष कहा कि "यदि वह देश के गृह मंत्री होते तो वरुण गाँधी पर रोड रोलर चलवा देते" , श्री यादव जैसे वरिष्ठ नेता से इतने घटिया बयान कि अपेक्षा सभ्य समाज को स्वीकार नही होगी । प्रतद्वंदिता के साथ नेताओं को याद रखना चाहिए कि युद्ध के भी नियम होते हैं, उन्हें प्रतिपक्षी पर कमर के नीचे वार नही करना चाहिए । लोकतंत्र में संयम आवश्यक है ,जनता को नेताओं की इस तरह की बयानबाजी का विरोध करना चाहिए ,लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ मीडिया को भी नेता के घटिया भाषण को अपने समाचार पत्रों में प्रमुखता नही देनी चाहिए,आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया का बहुत ज्यादा महत्त्व होगया है ,उन्हें भी ऐसे नेता के निम्नकोटि के बयान को अपने चैनलों पर प्रमुखता प्रदान नही करनी चाहिए ,क्योकि लोकतंत्र में उनका बहुत बड़ा योगदान होता है,उन्हें अपने समाचार पत्र प्रसार बढाने या चैनल के टी० आर० पी० बढाने के बजाय इस महा पर्व में अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करना चाहिए ।
ऊपर मैंने उदहारण के तौर पर श्री यादव के बयान का उल्लेख कर दिया है,जबकि बहुत से और नेता अन्य पार्टियों के भी हैं जो इसी तरह के घटिया बयान देने के आदी है ,उन्हें भी भविष्य में अपने बयानबाजी के स्तर में सुधर लाये । आज के सभी समाचार पत्रों में श्री यादव का बयान बहुत प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है ,इसी तरह सभी टी० वी० चैनलों पर पर इस बयान को प्रमुखता के साथ दिखाया गया है , यह नेताओं के निम्न स्तर को दर्शाता है ,राजनीती मसखरापन की जगह नही और न ही किसी नयी फ़िल्म के पहले दिन के प्रदर्शन की तरह से नही है ,मिडिया को भी अपने सामाजिक दायित्वों का पालन करना चाहिए ,यहाँ मैं आज की और घटना का उल्लेख करना चाहूँगा ,यह घटना दिल्ली में गृहमंत्री श्री चिदंबरम के प्रेस कांफ्रेंस के समय किसी पत्रकार द्वारा उन पर जूता चलाने की घटना हुई जिसकी सभी को आलोचना करनी चाहिए ।

Monday, April 6, 2009

भारत के निर्वाचन नियमावली में आमूल संशोधन अपेक्षित

वैसे तो परिवर्तन प्रकृति का नियम है फिर जब देश के संविधान की बात हो तब परिवर्तन का तात्पर्य बहुत गंभीर हो जाता है । आपको ज्ञात है की हमारे संविधान में १९५० से अब तक बहुत अधिक परिवर्तन /संशोधन हो चुके हैं, जिसके कारण वर्तमान संविधान अपना मौलिक स्वरूप खो चुका है ,वास्तव में तो देश की बदली दशा में एक नए संविधान की आवश्यकता है ,जिसके लिए पुन: संविधान सभा के गठन कर नए संविधान की आवश्यकता है किंतु यह बात कभी और की जायेगी । संविधान संशोधन की तरह समय - समय पर चुनाव कानूनों में भी संशोधन होते रहे हैं, किंतु आज समय की मांग के अनुरूप हमारे देश के चुनाव सम्बन्धी नियम संशोधित नही किए जा सके। जिसका कारण १९८९ के बाद किसी भी एक दल को संसद के दोनों सदन में अपेक्षित संख्या बल न होने के कारण संशोधन नही किया जा सका , यह पहला करण था किंतु दूसरा और ज्यादा महत्त्वपूर्ण करण राजनितिक दलों में सही संशोधन की इच्छा शक्ति कि कमी और आपसी सहमति का न बन पाना था । जिसकी वजह से आजतक चुनाव लड़ने से माफिया- गुंडों और असामाजिक तत्वों पर चुनाव आयोग को रोक लगाने का अधिकार नही प्राप्त हो सका । आज एक समाचार पत्र में मैंने पढ़ा कि आस्ट्रेलिया में नागरिक के मतदान में भाग न लेने पर अर्थदंड और एक वर्ष के लिए उसके मताधिकार को निरस्त कर दिया जाने का नियम है , भारत में भी इसी तरह का परिवर्तन / संशोधन करना आवश्यक है ,अन्यथा देश का बहुसंख्यक मतदाता चुनाव में भाग लेने से परहेज़ करता रहेगा और थोड़े वोट पाकर अपराधी चुनाव जीत कर संसद और विधान सभा में पदासीन होते रहेंगे । अब पानी सर के ऊपर हो चुका है जिसका स्वरूप हमारे सामने है ,पिछली लोक सभा में बहुत बड़ी संख्या में दागी संसद सदस्य थे जो प्राय: सभी दलों के थे. इनमे राष्ट्रीय पार्टियाँ भी सम्मिलित हैं किंतु विशेष कर क्षेत्रीय दलों ने कुछ अधिक कुख्यात अपराधियों को प्रत्याशी बना कर खड़ा किया था,जिनके दागी संसाद सदन में थे । इस चुनाव में भी बड़ी संख्या में दागी प्रत्याशियों को लगभग सभी दलों ने टिकट दिया है , जिनका नाम लेना यहाँ उचित नही है ।अब यह जनता का दायित्व है की देश और समाज हित में सभी दागी प्रत्याशियों को दलगत सोच से ऊपर उठ कर पराजित करना है और इसी तरह हमेशा ऐसे दागियों को तब तक चुनावों में पराजित करते रहना होगा जब तक कि इनके हौसले पस्त न हो जाए ,और दागी उम्मीदवार दोबारा फिर चुनाव लड़ने की हिम्मत न जुटा सके।

लोकतंत्र में नागरिको को वोट करने का अधिकार प्राप्त है, जिसका प्रयोग परिवर्तन के लिए आपको एकजुट होकर जातिवाद,संकीर्णता,धार्मिक भावना से हटकर मताधिकार का प्रयोग करना है ,इस हेतु आइये हम सब संकल्प ले कि किसी भी दशा में हम अपने मताधिकार का प्रयोग कर नए समाज के गठन में और देश की संवृद्धि में अपना योगदान करेंगे ।
जयहिंद - जय भारत

Thursday, April 2, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी-06

इस माह से प्रारम्भ होने वाले १५ वी लोक सभा के निर्वाचन बड़े ही कठिन समय पर है, जब देश विशवास के संकट के दौर से गुजर रहा है ,हर तरफ़ झूठ,अन्याय,भ्रष्टचार ,अनीति,शोषण,अधर्म का बोलबाला है। राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं गौरव जैसे शब्दों का सर्वथा अभाव देखने सुनने को नही मिलते है,ऐसे मौके पर देश की आम जनता के समक्ष बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लेने की जिम्मेदारी है ,जिसे सबको बहुत सोच समझ कर अंजाम देना है । प्रत्येक राजनीतिक दलों द्वारा अपनी अपनी बिसात बिछाई जा रही है । कई दलों के नेताओं ने तो यह सार्वजानिक सभाओं में खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि उनके सहयोग के बिना देश में अगली सरकार किसी भी दशा में बनाईं नही जा सकती है और हुंकार भर रहे हैं कि जैसे उनके जैसी जातिवादी सोच जनता की है ,और जनता के वोट उन्ही की झोली में हर हाल में होगा ,कुछ दलों के नेता तो ऐसे है जिन्होंने ५ वर्ष तक सत्ता का आनंद लेने के बाद नेतृत्व करने वाले दल के विरुद्ध अलग मोर्चा बना लिया है ,इनमे श्री लालू यादव तथा श्री राम विलास पासवान ने श्री मुलायम सिंह यादव के साथ मोर्चा बना कर उत्तर प्रदेश और बिहार में सं० प्र०ग० के नेतृत्व करने वाले कांग्रेस को ललकार दिया है । इसी तरह कल तक सत्ता का भोग करने वाले तमिलनाडु के पी०यम० के० ने श्रीलंका में तमिलों पर हो रहे अत्याचार के कारण तमिलनाडु की बदली परिस्थिति में द्र०मु०क०,कांग्रेस गठबंधन को छोड़कर सुश्री जयललिता के नेतृत्व वाले गठबंधन में सम्मिलित हो गए परन्तु उनके मंत्रियों में कुछ नैतिकता थी और उन्होंने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया किंतु श्री लालू प्रसाद यादव और श्री राम विलास पासवान ने मंत्रीमंडल से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना भी उचित नही समझा और उसपर यह धींगामुश्ती कि आगे जरूरत पड़ने पर वह फिर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे यह कहने से भी बाज नही आए। अब बिहार की जनता का यह दायित्व है कि ऐसे नेताओं को जो खुलेआम अपने मुखौटे के उतार चुके हैं उन्हें सही सीख दे ,इनके किसी झासे में ने आए । इसी तरह श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा परमाणु समझौते के बाद से अब तक सं०प्र०ग० सरकार को समर्थन देते रहे अब दोनों ने एक दूसरे को धरती दिखने की सोच कर एक दूसरे के आमने सामने खड़े हैं । जनता को अब क्षेत्रीय राजनितिक दलों की वास्तविकता का पूरी तरह से खुलासा हो चुका है कि इन दलों का राष्ट्रीय राजनीती में केवल इनका महत्त्व निजी स्वार्थ है । देश के विकास के बजाय इनका उद्देश्य केवल किसी प्रकार सत्ता हासिल कर शक्ति और लूट खसोट कर करना है ,श्री मुलायम सिंह राजनीती में १९६७ में विधायक बनकर अस्तित्व में आए अब उनके और उनके परिवार के पास करोड़ों की सम्पत्ति है,इसी तरह श्री लालू प्रसाद यादव और श्री राम विलास पासवान १९७७ से संसद चुनकर आए और अब करोड़ों की सम्पत्ति के स्वामी है ,मैं पूछता हूँ देश में इन जैसे राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के अतिरिक्त देश के कितने नागरिकों का आर्थिक विकास इनलोगों की तरह हुआ । स्पष्ट है इनके द्वारा अर्जित समस्त सम्पत्ति जनता की गाढी कमी से लूटी दौलत है । अब जनता को इनके सभी अबतक किए कारनामों को ध्यान में रखकर फैसला करने का समय आगया।
इन क्षेत्रीय दलों का न तो कोई सिद्धांत है और न ही इनका कोई घोषणा पत्र ही होता है,प्राय: ये दल किसी एक नेता की जेबी संस्था की तरह होती है,इनके दलों में परी के अन्दर किसी तरह का लोकतंत्र नही होता। एक प्रकार से इन दलों में व्यक्ति विशेष की तानाशाही होती है,इन दलों का गठन ही केवल व्यक्तिगत महत्वकान्षा की पूर्ति के लिए होता है । मेरा निवेदन है की जनता ऐसे दलों को वोट देने के पहले इनके कारनामों के अवश्य याद करले।

राष्ट्रीय पार्टियों के घोषणा पत्र चुनाव के पहले जारी किए जाते हैं जिसमे सामान्य रूप से पार्टी को सत्ता में आने के बाद सिद्धांत रूप में घोषणा पत्र के वादों के मुताबिक इनको कार्य करना होता है । किंतु अभी तक घोषणा पत्र में केवल लोक लुभावने वादे किए जाते हैं जैसे भा०ज०पा० ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अयोध्या में राम मन्दिर बनाने ,काश्मीर में धारा- ३७० के हटाये जाने , राम सेतु के मामले जैसे हिंदुत्व के मुद्दों को फिर उठाया है ,जबकि ये सभी घोषणा उनके द्वारा १९९९ के चुनाव में भी किया था परन्तु सरकार गठन के बाद राम जन्म भूमि पर मन्दिर का निर्माण और धारा -३७० जैसे मुद्दों को पार्टी ने रा०ज० ग० के एजेंडा में शामिल नही किया अब पुन: इनके फिर से घोषित करने का क्या तात्पर्य है ,इसके बारे में समझना होगा। देश का विभाजन दोबारा न हो इस बात को हमेशा ध्यान में रखते हुए शांन्तिपूर्ण तरीके से मसले को हल करने के लिए दूसरे सम्प्रदाय के लोगों से सहमति बना कर इन सभी का हल करना होगा ।भा० ज ० पा० ने अपने घोषणा पत्र में समाज के सभी वर्गों के लिए अनेक लुभावने वादे किए हैं जिसमे गरीबों के लिए,किसानो के लिए ,बालिकाओं आदि सभी के लिए कुछ न कुछ घोषित किया गया है,देखना होगा कि इनके सत्ता में आने पर पार्टी क्या करती है ,किंतु इनके पिछले ६ वर्षों के कार्य काल में इनके गठबंधन की सरकार ने अवश्य राम मन्दिर आदि मुद्दों को जिसे पार्टी ने ख़ुद स्थगित कर दिया था के अतिरिक्त देश को परमाणु शक्ति के देशों में सम्मिलित करने का साहस पूर्ण कार्य ,देश की अर्थ व्यवस्था में अभूतपूर्व विकास,विश्व में भारतीय सम्मान में वृद्धि का कार्य करने का श्रेय अवश्य है ,किंतु फिर से इस दल को पुन: लोगों में अपना विश्वास जताने के लिए कठोर प्रयास करना होगा, राजनितिक दलों में गुटबाजी एक प्रकार से लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का अंश होता है,इससे किसी राजनितिक से जनता को परहेज करने की आवश्यकता नही है ,जिस दल में गुटबंदी न हो तो यह समझ लेना चाहिए कि उस दल में लोकतंत्र नही है ,जहाँ नेतृत्व की आलोचना का सामर्थ्य आम कार्यकर्ता में न हो उस दल में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है और ऐसे दल की वास्तव में लोकतंत्र में आस्था नही होती है । जनता को छद्म लोकतान्त्रिक दलों से भी सावधान रहना चाहिए ।
अब वर्तमान में सत्ता में स्थापित कांग्रेस पार्टी की चर्चा करना चाहूँगा ,यह दल देश का सबसे पुराना और स्थापित दल है ,जिसका नेतृत्व प्राय: किसी एक चोटी के नेता के पास रहता आया है और पूरी पार्टी का केन्द्र वही नेता होता था यह परम्परा अब भी वर्तमान में है। आज़ादी के बाद १९६४ तक श्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में था ,उनके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी क्रमश: श्री राजीव गाँधी और वर्तमान में श्री राजीव गाँधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गाँधी तथा आगे आने वाले समय में श्री राहुल गाँधी को नेतृत्व मिलना प्राय: निश्चित है । इस दल ने देश पर कुल ११ वर्षों को छोड़कर प्राय: एक छत्र शासन किया । दल का इतिहास हम सभी जानते है पार्टी के विषय में बताना सूरज को रोशनी दिखाने जैसी बात है । फिर भी चर्चा के लिए पार्टी के घोषणा पत्र का उल्लेख करना उचित होगा ,कांग्रेस पार्टी का तो वही २००४ का एजेंडा है ,चूँकि उनकी सरकार ने ५ वर्ष सरकार चलाई है जिसके परिणाम स्वरुप महगाई अपने चरम सीमा पर है,देश में आतंकवादी गतिविधियाँ अपने चरम पर है,बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है ,किसानों द्वारा विदर्भ,आन्ध्र प्रदेश में किसानो द्वारा आत्महत्या के मामलों में किसी तरह की कमी नही आई ,जिसे लेकर २००४ का चुनाव में उनके द्वारा मुद्दा बनाया गया था । २००४ के चुनाव में महिला आरक्षण को भी मुद्दा बनाया था किंतु ५ साल बाद भी देश की महिलाओं को सामान अधिकार की बात तो दूर उन्हें ३३% आरक्षण भी नही दे पाई, यह उनकी असफलता है जिसका पार्टी को जवाब देना होगा ।किंतु ऐसा भी नही की पार्टी ने इस अवधि कुछ भी नही किया पार्टी की सरकार ने नरेगा के मध्यम से ग्रामीणों को रोजगार का अवसर देने का काम शुरू किया जो अच्छी योजना है ,यह बात और है की योजना नेताओं और नौकरशाही के मुह का निवाला बन गई ,पर योजना बहुत अच्छी है ,आगे योजना से आम ग्रामीण को अवश्य लाभ मिलेगा । यदि कांग्रेस नेतृत्त्व की सरकार के पिछले पाँच वर्ष 2००४ से २००९ तक और १९९९ से २००४ तक की भा०ज० पा० के नेतृत्त्व की सरकार के ५ वर्ष के कार्य काल की उपलब्धियों की दृष्टि से तुलना करने पर भा०जा०पा० के नेतृत्त्व के सरकार ने तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा अच्छा काम किया । किंतु अन्तर श्री अटल बिहारी वाजपेयी , श्री लाल कृष्ण अडवानी और श्री मनमोहन सिंह के बीच का है । श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक बहुत अनुभवी राजनेता थे जिनका व्यक्तित्व चुम्बकीय था और वह एक उच्च कोटि के कूटनीतिज्ञ भी थे जिनका अन्तरराष्ट्रीय जगत में एक विशिष्ट स्थान था ,उनकी तुलना में श्री मनमोहन सिंह किस स्थान पर आते हैं, इसके बारे में हमें स्वयम तय करना होगा ,श्री मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के भी सर्वोच्च नेता भी नही है ,पार्टी के शीर्ष पर श्रीमती सोनिया गाँधी हैं ।भारतीय संविधान में प्रधान मंत्री का स्थान एक विशिष्ट बनाया गया था जो देश और सदन दोनों का नेता होता है ,श्री मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री रहते हुए इस अति महत्त्व पूर्ण पद की गरिमा में ह्रास हुआ ।जिसके कारणों के की परख करने पर यह पता चलता है कि यदि किसी एक दल का बहुमत होने कि दशा में पार्टी नेतृत्त्व अपने श्रेष्ठ नेता को इस पद पर चुनाव करती जिसे देश तथा लोक सभा दोनों का पूर्ण वास्तविक विश्वास होता,मैं चाहूँगा कि यदि कांग्रेस पार्टी फिर सत्ता में आए तो प्रधान मंत्री के पद पर स्वयं श्रीमती सोनिया गाँधी आसीन हो ,क्योकि जनता उनके नेतृत्त्व गुणों कि कायल होगई है । छद्म नेतृत्त्व के बजाय वे स्वयं अपने हाथ में सत्ता की कमान ले ।
उपर्युक्त तथ्यों के बाद मेरी आप सब से विनती है की कृपया केवल राष्ट्रीय दलों को अपना कीमती मत देने का कष्ट करे।


Wednesday, April 1, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी -05

मैं कई दिनों से इस बात को सोच - सोच कर बहुत परेशां था की मैं क्यो देश की लोक्तान्रिक व्यवस्था को लेकर इतनी गहरी चिंता में हूँ । बाद में यह उत्तर मिला कि शायद ये मेरा भ्रम है कि देश को आने वाले वर्षों में इस चुनाव के परिणाम से कुछ लाभ होगा ,इसलिए मैंने अपने विचार व्यक्त करने की सोच कर जन जागरण का प्रयास शुरू किया ,किंतु मैं गलत था,इस देश में निवास करने वाले लोग हजारों वर्षों से यथास्थिति वादी रहे हैं ,कोई भी शासक हो उन्हें किसी की परवाह नही रही,इस बात का साक्षी स्वयम इतिहास भी है । शक ,हूण,कुषाण, यवन अफगानी,मुगल और अंत में अँगरेज़ आए पर इस देश के लोगों ने सभी को आत्मसात कर लिया और उनकी कतई परवाह नही किया । यह देश जैसा पहले था वैसा ही है और आगे भी रहेगा। हम सब लोग ईश्वरवादी हैं ,जैसी ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा।हमें उसके लिए परेशान नही होना चाहिए । लेकिन फिर यह सोच आयी कि एक नागरिक होने के नाते मेरा व्यक्तिगत मत है कि जैसा भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं कि "कर्मणे वा धिकारस्ते माँ फलेषु कदाचान "अर्थात कर्म बिना फल की चिंता करते हुए करना चाहिए ,इसी वाक्य को ध्यान में रखकर अपने कर्तव्य और धर्म का पालन कर रहा हूँ ।
मेरे कई मित्रों ने मेरे लेखन पर किसी खास राजनितिक विचारधारा का पक्षकार होने का आरोप लगाते हुए कई पुराने पोस्ट में लिखी बातों पर अपनी आपत्ति जताई इनमे मुख्य रूप से विमान अपहरण काण्ड पर श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा आतंकवादियों को छोड़े जाने के निर्णय के सम्बन्ध में मेरे विचारो को अनुचित बताया गया परन्तु मैं अपने पूर्व में व्यक्त विचार पर किसी प्रकार की कोई क्षमा याचना नही कर रहा हूँ क्योकि मात्र इस बात से कि आगे चलकर छोड गए आतंकी बाद में और बड़ी हानि देश वासियों को पंहुचा सकते हैं इसलिए विमान के अन्दर बंधक बने यात्रिओं को जिन्हें अपहरण कर कंधार ले जाया गया था जहाँ आतंकवादियों ने एक यात्री की हत्या की और तब उनके द्वारा दो आतंकी जो उस समय भारत में जेल में थे ,को छोड़ने की शर्त पर हवाई जहाज के बंधकों को छोड़ने की सरकार के समक्ष अफगानी विदेश मंत्री के माध्यम से रखा था, उस समय अफगानिस्तान तालिबानी शासक मुल्ला उमर के नियंत्रण में था ,जो पाकिस्तान के पूर्ण समर्थन में था,जहाँ हम आक्रमण भी नही कर सकते थे ,ऐसे हालत में अपने सैकड़ों हमवतनों को कंधार में बेमौत मरने के लिए छोड़ देना किसी भी नजरिये से उचित नही था,परिस्थिति विशेष में सरकार को आतंकवादियों की मांग पूरी करनी पड़ी ।मुंबई के आतंकी हमले में जिस प्रकार कि कार्यवाही आज कि सरकार कर सकी उसका कारण घटना का देश में होना था ,जिसके लिए वर्तमान सरकार ख़ुद की पीठ थाप थापा रही है परन्तु घटना के समय गृह मंत्री श्री शिवराज पाटिल और अब्दुल रहमान अंतुले के द्वारा जारी बयान के प्रधान मनरी श्री मन मोहन सिंह अथवा सं०प्र० ग० की चेयर पर्सन सोनिया जी के पास कोई उत्तर है ,मैं अपने मित्रों से पूछना चाहता हूँ कि कितने देश इस्राइल जैसे हैं जिन्होंने विदेशी ज़मीन से आतंकियों के चंगुल में आए देशवासियों को छुडा कर वापस ले जा सके हैं।पूरे विश्व में इस्राइल ने अकेला उदहारण पेश किया था। यदि आज वर्तमान नेतृत्त्व में आतंकवाद से लड़ने की सचमुच इच्छा शक्ति हैं तब उन्हें सीमापार के आतंकी ठिकानो पर सीधे आक्रमण कर आतंकियों के ट्रेनिग कैम्पों तबाह कर उनकी जड़े साफ कर देना चाहिए था, किन कारणों से अबतक इन आतंकी कैम्पों को छोड़ रखा गया है । मेरी राय में हजारो कि जान इसलिए जाने दे कि आगे कोई बड़ा खतरा हो सकता है ,केवल इस संभावना पर सरकार निर्णय नही लेती है । इसलिए मेरा निवेदन है कि कृपया मेरे द्वारा व्यक्त विचारों को समझने का प्रयास करे । जहाँ तक किसी एक विचारधारा कि तरफ़ झुकाव की बात हैं मैं मानता हूँ कि बचपन से ५७ - ५८ वर्षों तक जिस वातावरण और परिवेश में व्यक्ति रहता है उसका कुछ न कुछ प्रभाव उसके विचारों पर अवश्य पड़ता है किंतु मैं दृढ़ता से कहता हूँ कि मैंने जो कुछ भी लिखा वह किसी पार्टी की विचारधारा या उसका प्रचार के लिए था ,इससे आश्वस्त रहे।
कृपया अपने विचार अवश्य ब्लॉग पर लिखने का कष्ट करें।