Tuesday, March 31, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी -04

आज मैं कल की चर्चा को विस्तार देते हुए कुछ अन्य महत्वपूर्ण बात करना चाहता हूँ की देश की बहुसंख्यक मतदाताओ ने सामान्य रूप से मतदान से अपने आप को क्यो दूर रखा उसके कारण तलाशने का का प्रयत्न करने बैठा तो मुझे यह अनुभूति हुई की शायद जनता का चुनावो से विश्वास उठने का कारण संभवतः जनता का अपने नेता से विश्वास से उठ जाना था । राजनितिक दल के नेता के भ्रष्ट आचरण ,पदलोलुपता,चरित्रहीनता और व्यक्तिगत स्वार्थी होने और देश समाज जोड़ने के बजाय विभाजन के उनके प्रयासों के कारण जन सामान्य इनसे दूर होता गया अर्थात जनसामान्य का विश्वास खंडित हुआ । यहाँ मैं नेता में क्या सद्गुण होने अपेक्षित है ,के विषय में चर्चा के क्रम में कुछ उल्लेख करना चाहूँगा । मैं कल एक ब्लॉग पर श्री श्री रवि शंकर के विचार पढ़ रहा था ,उन्होंने नेता में ५ गुणों की अनिवार्यता का उल्लेख किया था,जिनका मैं विवरण मैं यहाँ देना उचित समझता हूँ ,जो निम्नवत है :-
१- सत्यदर्शी ,२-समदर्शी,३-प्रियदर्शी,४-पारदर्शी,५-दूरदर्शी आदि सभी पाँचों गुणों का होना आवश्यक है ।लोगों को इन्ही कसौटियों पर नेता को परखना होगा। नेता में उपर्युक्त सभी का पाया जाना एक आदर्श स्थिति होगी । मैं यहाँ आदर्श का उल्लेख केवल इस नीयत के साथ कर रहा हूँ की अगर अधिक न होकर कुछ कम सद्गुण नेता में हो तो ऐसे नेता को हमें वरीयता देनी होगी ।नेता के सद्गुणों की चर्चा के साथ- साथ मैं इस तथ्य का भी यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा की आप चुनाव में अपने मताधिकार का अवश्य प्रयोग करे,मतदान न करने का यह अर्थ होता है की आप सबकुछ चलेगा के लिए संकल्पित हैं और आप किसी प्रकार के परिवर्तन के इक्छुक नही हैं । यह भाव एक तरह से निराशा का है और हम उससे निकलने का प्रयास भी नही करना चाहते,जिसका फायदा असामजिक तत्वों द्वारा उठाया जाता है । इसलिए मेरा नम्र निवेदन अपने पाठकों से है की ईश्वर के लिए इस आम चुनाव के पहले कुछ समय निकलकर राष्ट्र चिंतन अवश्य करें क्योकि राष्ट्र चिंतन ही आत्म चिंतन है,राष्ट्र हित में ही आत्म हित निहित है।

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