मैंने अपन्रे १७ मार्च के पोस्ट में २००९ के महा निर्वाचन पर आंशिक रूप से इसके महत्त्व के विषय में चर्चा की थी.आज उसी चर्चा को आगे बढ़ते हुए मैं आप सब का ध्यान देश के राजनितिक अवस्था एवं व्यवथा की ओर आकृत करना चाहता हूँ की यह एक विशाल जनसँख्या वाल देश है जिसमे अनेक भाषायें,प्रदेश,तथा अनेक संप्रदाय के लोग निवास करते है परन्तु सब मिल कर हजारो वर्षों से रह रहे है। जब इतनी बड़ी जनसँख्या एक साथ रहेगी तब आपस में टकराव,बहस,तू- तू मैं मैं तो होगी ही। यह स्वाभाविक है क्योकि हमने एक परिवार के कई सदस्यों को आपस में लड़ते भिड़ते देखा है किंतु परिवार पर संकट आने के समय सभी सदस्य एक दुसरे से मिलकर उसका मुकाबला करते हैं वैसी ही स्थिति इस समय देश में भी व्याप्त है,मेरे ऊपर दिए परिवार के उदहारण से आप बात समझ गए ही होंगे।
आज देश भी ऐसी ही संकट के दौर से गुजर रहा है।वैश्विक आर्थिक मंदी,पड़ोसी देशो के राजनितिक और सामाजिक दशा बहुत ही भयानक दौर से गुजर रही है। यह बात हम ख़ुद देख सकते हैं,उत्तर में नेपाल जिसमें राजनितिक परिवर्तन के बाद से अस्थिरता है,पश्चिम में पाकिस्तान अपने भीतरी संकट से गुज़र रहा है,हम नही बता सकते की क्या यह पाकिस्तान के अपने अस्तित्व का तो संकट नही है, अभी हाल की घटनाओ के अनुसार पाकिस्तान में अल कायदा और लश्कर तथा तालिबानी आतंकवादियों का पाकिस्तान के उत्तर और पश्चिमी भाग पर पूरा नियंत्रण है। पूर्व में बांग्लादेश में जो अभी हाल में उनके बांग्लादेश रायफल्स के जवानों ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था,सुदूर दक्षिण में श्रीलंका में लिट्टे से लडाई अभी जरी है।
आर्थिक मंदी का आकलन तो केवल तो केवल इसी से किया जासकता है की महगाई 0.27 प्रतिशत है फिर चीजो के दाम असमान पर हैं। यह मुद्रा इन्फ्लेशन के विपरीत दिफ्लेशन की दशा कही जाती है।
इन हालातों में देश में आम चुनाव है जिसका तात्पर्य और महत्त्व दोनों बहुत धीर गंभीर हो जाता है, ऐसे में देश की सम्पूर्ण जनता,नागरिको का फ़र्ज़ बहुत अधिक हों जाता है ,देश के नेता जब गैर जिम्मेदार हो उस दशा में तो और भी बढ़ जाता है,हम देख रहे हैं की ५ वर्षों तक सत्ता की भागीदारी करने वाले नेता और उनकी पार्टियाँ किस तरह से राजनितिक लाभ के लिए एक दुसरे को नीचा दिखा रहे हैं और साथ ही साथ देश के अवाम को गुमराह कर रहे हैं,बिहार,झारखण्ड,तमिलनाडु और ओडिसा इसके वर्तमान उदाहरण हैं.इलाकाई दलों के छोटे छोटे दलों के छोटे छोटे नेताओं की कितनी बड़ी महत्व कंछाये हैं यह हम ख़ुद देख रहे हैं,आज जबकि केन्द्र में एक मजबूत और दृढ़ सरकार के चयन की आवश्यकता है उस दशा में हम नागरिकों की जिम्मेदारी सही और ग़लत / खराब और ज्यादा ख़राब के मध्य अन्तर करने,भ्रष्ट और कम भ्रष्ट में अन्तर करने का है।
देश में आज यदि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत लेन की स्थिति में नही है जिसके लिए १९९९ से चुनाव के पूर्व गठबंधन का मार्ग देश के राज नेताओ ने निकला जिसमे गठबंधन में शामिल सभी दल आपस में बात कर एक साझा कार्यक्रम तैयार कर उसपर आम सहमती के आधार पर चनाव के बाद साथ मिलकर कम करती थी,आज भी यह ततीका लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए उचित है,किंतु यदि जब दल एक दुसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ने के बाद यदि फिर साथ आती है वह लोकतंत्र के विरोधी कार्य होता है जिसे देश के नागरिको को संकल्प के साथ रोकना होगा।
आइये आज नवरात्री के इस पवन पर्व पर हम एक साथ, एक भाषा,एक स्वर में यह संकल्प ले की किसी भी दशा में हम अपमे मताधिकार का प्रयोग अवश्य करेंगे तथा मिलकर देश को आने वाले संकट से बचने के लिए ऐसे सभी छोटी बड़ी ताकतों का विरोध करेंगे और देश की आगामी केन्द्रीय सरकार को मज्ब्बूत चुनेंगे.
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