Monday, March 30, 2009

भारतीय लोकतंत्र के परीक्षा की घड़ी -03

पिछले पोस्ट में मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा की थी,आज उसी मुद्दे पर आगे चर्चा जारी रहेगी ,मैंने अपने एक पोस्ट में यह बात कहा था की चुनाव एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से देश की आगामी सरकार चुनी जाती है,इसलिए प्रत्येक देशवासी का दायित्व और कर्तव्य दोनों ही अनिवार्य रूप से बनता है की इस में पूरी निष्ठां के साथ अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे । हमे लोकतंत्र को और मजबूत और दृढ़ बनाना होगा जिससे किसी भी राजनीतिक दल द्वारा फिर कभी भी इसकी हत्या का प्रयास न हो सके जैसा पूर्व में १९७५ में तब की सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र गला घोट दिया गया था । आज की परिस्थितियां पहले से एकदम भिन्न है,आज किसी भी एक दल को लोक सभा में अपने बूते बहुमत हासिल करना लगभग असंभव है, किंतु हमे और इन दलों की और भी पहरेदारी करने की आवश्कता है। इसके लिए हमें लगातार सतर्कता बनाये रखनी होगी । आजकल इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा अपने चैनलों पर चैनल संचालको की राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप भ्रांतिपूर्ण तरीके से तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर टी०वी० पर दिखा कर देश की जनता को गुमराह करने का प्रयास किया जा रहा है,यहाँ मैं चैनलों का नाम उधृत करना उचित नहीं समझता हूँ । आप स्वयं उनको जानते हैं । इनसे दूरी बना कर रखना जरूरी है ।
आज समय की मांग है की हमको बहुत बड़ी संख्या में मतदान में भाग लेना होगा और मतदान के प्रतिशत में सुधर लाना होगा। पिछले सभी चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम हुआ करता था, जिसके कारन अल्पमत से चुने सांसदों से चुनी सरकार बनती रही जो लोकतंत्र के विपरीत है। लोकतंत्र में बहुमत से चुने सांसदों द्वारा सरकार गठित होनी चाहिए। यहाँ मैं आप को फ्रांस में राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रकिया का उल्लेख करना चाहूँगा,फ्रांस में जो भी राष्ट्रपति पद के जितने भी प्रत्याशी होते हैं, दो से अधिक होने की दशा में यदि कोई भी प्रत्याशी जो ५० प्रतिशत से कम मत वाले को चुनाव से बाहर होना होता है और जब तक कोई अन्तिम रूप से पचास प्रतिशत से अधिक वोट न प्राप्त कर ले ,अर्थात केवल ५० प्रतिशत से अधिक वोट पानेवाले को विजयी घोषित किया जाता । हम अब ६२ वर्ष से ऊपर की आयु वाले लोकतान्त्रिक देश के हैं जिसे अब अपनी राजनितिक उम्र के लिहाज से आचरण करना होगा। वोट देने के पहले राजनितिक दलों के पूर्व इतिहास का देखना होगा तथा केवल सचमुच के राष्ट्रिय दलों में किसी एक का चयन करना होगा,यदि पिछले चुनाव की तरह किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत न मिलने की दशा में किसी तीसरी पार्टी को सदन में बाहर से समर्थन के आधार पर बनी सरकार बनी । ऐसी सरकार की संकल्प शक्ति कम होती है, जिसका लाभ कोई भी अन्य पार्टी अपने राजनितिक लाभ में उठा सकती है,अल्प मत की सरकार को हमेशा किसी बैशाखी की जरूरत होती है और ऐसे दल अपने सहयोग की कीमत
वसूलना जनता है ।

अब मैं आंचलिक राजनितिक दलों की बात करूंगा , क्षेत्रीय दलों के अपने राजनितिक स्वार्थ होते हैं जिसके कारण इनकी अपनी सीमायें होती हैं जिसके कारण इनकी सोच भी आंचलिक होती है,इनके सहयोग से बनी केन्द्रीय सरकार को राज्य विशेष के हितों की रक्षा करना होता है। इसलिए ऐसी पार्टी को राज्य विधान सभा के चुनाव हेतु वहां के नागरिको को वोट देने में कोई बुराई नही है परन्तु राष्ट्रीय संसद के लिए मतदाता को सोच समझ कर वोट देना होगा। इन सभी दलों की राजनीती के सम्बन्ध में तमिलनाडु,आंध्र प्रदेश,केरल ,पश्चिम बंगाल के उदाहरणों से स्थिति स्वत स्पष्ट होजाती है।
शेष आगे अगले पोस्ट में चर्चा होगी। कृपया पाठक मेरे मत से असहमति की दशा में अपनी अभिव्यक्ति अवश्य देने का कष्ट करे।

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