Friday, May 1, 2009

तीसरे दौर में भी जनता की मतदान में रूचि नही दिखी

कल के तीसरे दौर के मतदान में भी जनता ने मतदान में उत्साह नही दिखाया, अबतक हुए मतदान में नए मतदाता जिनकी संख्या लगभग ढाई करोड़ बताई गयी है ने मतदान में अपनी अभिरुचि नही दिखायी जो अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है ,जबकि ढेर सारी कवायत देश भर में चुनाव आयोग के साथ अनेक संस्थाओ ने मतदाता को उसके अधिकार/कर्तव्य के लिए जागरूक करने का प्रयत्न किया परन्तु परिणाम वही धाक के तीन पात वाली कहावत की तरह ज्यो के त्यों देखने में आया,सही मायनों में यह लोक तंत्र के लिए शुभ लक्षण क़तई नही है पर चुनावों में जनता का सक्रिय सहयोग न करने के कारण और निवारण पर गंभीर विचार करना अनिवार्य होगया है।

मैंने इस पर बहुत चिंतन किया बाद में मेरे मन में भी कई सवाल उठे कि क्या इस भीषण आग उगलती गरमी में हमने ऐसी कौन सी सुविधा जनता को मुहैया कर रखी है जो आम मतदाता को उसमे मरने और जान देने को कह रहे हैं,सच्चाई से देखिये कि जिस देश में हम नागरिक से उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहने की बात कह रहे हैं, उन्हें ६२ वर्षों की आज़ादी के बाद भी जरूरत के मुताबिक सामान्य जन जीवन की मौलिक आवश्यकता की चीजें नही मुहैया कराइ गई जैसे बिजली के बिना आज विकास की बात बेमानी है और सरकारें आवश्यकता के अनुरूप बिजली नही दे पा रहीं हैं ,स्वास्थ्य की बात करना दूर की बात है ,वहां पर यदि कोई मतदाता वोट देने जाते समय लू लगने से मर जाए तो उसे और उसके परिवार को शासन किस तरह से और क्या सुविधा मुहैया करा सकेगा , इस विषय में आप को कुछ भी बताने कि जरूरत नहीं है। क्या सारे कर्तव्य नागरिकों का है देश के नेता केवल कोरा भाषण देने के , वह भी कमजोर और मजबूत के व्यर्थ की बकवास में हमारा समय और धन का दुरुपयोग करते रहें ,यह अब नहीं चलेगा । किन लोगों ने इस भीषण गर्मी के मौसम में चुनाव की घोषणा की,जो एयर कंडिशनर में रहने वालों को शायद आम आदमी की परेशानी की एकदम परवाह नहीं है ,सच पूछे तो इन देश के नेताओं को चुनाव में जनता जितनी कम संख्या में भाग लेगी उसमे ही इनका फायदा है ,अब यदि ३५ प्रतिशत मतदान होने के बाद शेष ६५% ने एक प्रकार से सारे प्रत्याशियों को एक प्रकार से नकार दिया किंतु राजनीतिक दल के नेता कुल ७% मत पाकर जीतने वाले को लेकर अपना दांव खेलना शुरू कर देगा और फिर सरकार बनाने की जोड़ तोड़ करने और सरकार बनने के बाद जनता के खून पसीने की कमाई का दोहन कर ऐश करना शुरू कर देता है ,यदि ७० से ८० -८५ प्रतिशत मत पड़ने लगे तब इनकी मौज कैसे होगी ,इसलिए संभवतः साजिशन चुनाव ऐसे मौसम में रखा गया था,जबकि इन नेताओं को मालूम है की गर्मी के मौसम में अपने कृषि प्रधान देश में अप्रैल और मई के महीनों में किसान को अपनी मेहनत की कमाई फसल की कटाई और अगले फसल के लिए खेतों को तैयार करने के लिए सिंचाई का काम करना उसकी रोजी से जुडा मसला होता है वह पहले अपने काम को प्राथमिकता दे या वोट करने जाए ,साथ ही इसी मौसम में नई फसल के घर में आने के बाद उसके पास चार पैसे होते है जिनसे वह अन्य घरेलु काम जैसे शादी- विवाह आदि के दायित्वों को भी पूरा करता है ,आर्थिक रूप से सम्पन्न नागरिक के लिए जाडे के मौसम में शादियाँ होती है क्यो की वह उस मौसम में होने वाले खर्चों को करने में समर्थ होते हैं ,किंतु देश में बड़ी संख्या में नागरिक जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं या मध्यम वर्ग के जिन्हें आवश्यक आवश्यकता को पूरा कर पाने में अत्यन्त कठिनाई उठानी पड़ती है उसे शादी - विवाह जैसी पारिवारिक दायित्व को पूरा करने में और भी मुश्किल होती है ,इसीलिए इन्ही गर्मियों में शादी - विवाह का भी मौसम /लगन/सहालग होती है । जो सामाजिक रूप से अत्यन्त अनिवार्य काम होता है । चुनाव की घोषणा के पूर्व इन समाजिक पहलुओं पर विचार करना जरूरी था ,यदि शासन और जनता में इन विषयों पर संवाद हीनता की स्थिति है, निश्चित रूप से इसमे राजनीतिक दलों के मंशा ठीक नही है और वो नही चाहते की देश का आम नागरिक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में सही ढंग से भाग ले।क्यों की चुनाव आयोग ने सभी राजनितिक दलों से चुनाव के समय के लिए राय मशविरा करके चुनाव की तारीखें तय किया था ।
इमानदारी से जिन चुनाव क्षेत्रों में ६०% से कम मतदान हुआ उन सभी स्थानों पर चुनाव अवैध है और इन सभी स्थानों पुनः अगले जाडों में अर्थात नवम्बर या अगली फरवरी के महीनों में चुनाव कराये जाए अब समस्या है की इस अवधि में सरकार जिसका कार्यकाल जून तक है ,जून के बाद एक राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाय ओरयह सरकार अगले चुनाव के पूर्व लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में यह संशोधन करे और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में मतदान प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य है और मतदान न करने वाले मतदाता को कम से कम एक वर्ष के लिए उसके नागरिक अधिकारों से वाचित कर दिया जाएगा ,साथ ही ५०% से कम मत पाने वाला विजयी नही होगा और चुनाव में प्रत्याशी द्वारा जमा की जाने वाली जमानत की धनराशी बढाकर कम से कम एक लाख रुपये कर दी जाए जिससे फालतू के प्रत्याशी चुनाव में खड़े न हों ,इस प्रक्रिया को अपनाने में चनाव प्रक्रिया दो स्तरीय होगी ,का संशोधन किया जाय ।
आप सोच रहे होंगे की मैंने बहुत खर्चीली व्यवस्था का विकल्प दिया है परन्तु जब लोक तंत्र को हमने अपनाया है तो वह सही अर्थों के हो ,यदि आज की दोष पूर्ण व्यवस्था में जिस तरह से जनता का धन का अपव्यय राजनीतिक पार्टी कर रही क्या आपने उसका आकलन किया है ,एक अयोग्य सांसद और विधायक के को प्रति वर्ष दिया जाने वाला वेतन और भत्ता और ऊपर से उन्हें विकास के नाम पर सांसद और विधायक निधि के रूप में खर्च करने के लिए दी गई करोड़ों रुपयों की धनराशी और संसद और विधान सभाओं में वास्तविक काम काज पर व्यय होने वाली धनराशी और संसद की बैठकों में इन की भागीदारी तथा इन बैठकों के बहिष्कार की अवधि पर व्यय होने वाले राजस्व का आकलन करें तो चुनाव की अनिवार्यता और दो स्तरीय चुनाव की प्रक्रिया अब तक के व्यर्थ में व्यय होने वाले धन के अपव्यय की तुलना में कम आएगा।
साथ ही साथ वास्तविक बहुमत से चुने प्रतिनिधि का चरित्र आज के छद्म प्रतिनिधियों से अवश्य उत्तम होगा ।

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