Sunday, May 17, 2009

चुनाव नतीजे का यथार्थ

पन्द्रहवीं लोक सभा के चुनाव सम्पन्न हुए नतीजे आ चुके हैं जनता ने स्पष्ट तौर पर जनादेश कांग्रेस पार्टी को अपने गठबंधन के साथ अपने पिछली सरकार के अधूरे कार्य पूरे करने और देश में सुशासन देने का काम सौपा है ,जनता ने दूसरे गठबंधन को जिन्हें किसी भी रूप में बहुमत मिलना सम्भव नही दिखाई दे रहा था,की अपेक्षा कांग्रेस गठबंधन को सरकार चलने का अवसर प्रदान किया है, इस जनादेश का अभीष्ट भारतीय जनता पार्टी को समझने की जरूरत है,मूल रूप से भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन द्वारा केवल उत्तर भारत में आसाम,बिहार,हरियाणा,पंजाब,महाराष्ट्र और आंशिक रूप से उत्तर प्रदेश में गठबंधन किया गया था,राजस्थान,कर्नाटक,मध्य प्रदेश,गुजरात,छत्तीसगढ़,झारखण्ड में पार्टी का निजी जनाधार होने के कारण पार्टी को किसी दल से समझौता करने की आवश्यकता नही थी किंतु पार्टी का जनाधार जिन राज्यों में बहुत कमजोर था इन राज्यों में उसके साथ कोई गठबंधन भी नही था ,इन राज्यों में पश्चिम बंगाल,उडीसा ,आंध्र प्रदेश,तमिलनाडु,केरल जिनसे लोकसभा के कुल १६४ सांसद चुने जाते हैं ,से किसी भी एक पार्टी से चुनकर आने की स्थिति नहीं थी ,निश्चित रूप से यदि पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन कर लिया होता तो उसे चुनाव बाद इन राज्यों की किसी न किसी पार्टी के साथ तालमेल बैठने के लिए इन क्षेत्रीय दलों से अनुचित समझौता करना होता ,वर्ष १९९९ के चुनाव के पूर्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्त्व में पार्टी ने केरल को छोड़कर सभी राज्यों जैसे दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश में तेलगु देशम से तथा तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम पार्टी से तथा पूर्व में आसाम में आसाम गन परिषद् ,पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ,उडीसा में बीजू जनता दल के साथ चुनाव के पूर्व किया जाने के बाद चुनाव लड़ा था,जिसके कारण जनता को पहले ही यह विश्वास बना लिया गया था जिसके परिणाम स्वरुप चुनाव जीता गया था,उनके बाद पार्टी अपने पूर्व सहयोगियों को अपने साथ जोड़े रखने में असफल रहने के कारण चुनाव के बाद जो स्थिति आई है वह जनता द्वारा सक्षम विपक्ष की भूमिका करने हेतु दिया गया है ,इसी चुनाव के परिणाम से वाम दलों को और क्षेत्रीय दलों को भी जनता ने सही सीख दी है,अब इन दलों को केवल फिलर की भूमिका करना है,एक तरह से जनता ने भारतीय जनता पार्टी और क्षेत्रीय दलों को आपस में सद्व्यवहार और सुधरने का समय दिया है,पिछली लोकसभा में वाम दलों और क्षेत्रीय दलों द्वारा बहुत ही अव्यवहारिक आचरण किए गए जिसके कारण अनावश्यक रूप से सरकार चलाने में असुविधा और अस्थिरता का वातावरण बना।
भारतीय जनता पार्टी जो पहले बहुत अनुशासन प्रिय पार्टी थी जो विगत कई वर्षों में पार्टी अनुशासनहीनो की पार्टी बन कर सामने आयी है ,वैचारिक मतभेद एक जनतांत्रिक प्रक्रिया का अंग है किंतु बहुमत से लिए गए पार्टी के निर्णय सभी पार्टी जनों को निर्णय को अनिवार्य रूप से स्वीकार करना उससे ज्यादा आवश्यक जनतांत्रिक प्रक्रिया है ,जिसका वर्तमान पार्टी में आभाव दिखाई दे रहा है .आज पार्टी को संगठनात्मक सुधार करने सक्रिय प्रयास तत्काल से करना होगा ,पार्टी परोक्ष रूप में ही एकजुट दिखाई नहीं देती है,साथ ही साथ पार्टी को अपने चाल और चरित्र पर विचार करना होगा,जिस दृष्टि कोण से रामजन्म भूमि आन्दोलन चलाया गया था वह एक प्रकार से पूरा हो चुका है ,आज अयोध्या में श्री राम का अस्थाई मन्दिर स्थापित होचुका है ,इस मन्दिर का स्थाई निर्माण करना धर्मिक संस्थाओं का काम है जिसे न्यायालय के निर्णय और हिंदू और मुस्लिम समाज की आपसी सहमती बनाने का काम होना शेष है,मैं यह तथ्य जानता हूँ की पार्टी मुस्लिम विरोधी नही है पर मानना होगा की श्री नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री होते हुए गुजरात में हुए दंगों का लांछन पार्टी पर लगा और आजतक पार्टी इससे उबर नहीं पाई ,जिस प्रकार से श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा १९८४ के सिख विरोधी दंगों के लिए सिक्ख समाज से माफ़ी मांगी उसी तर्ज पर पार्टी को मुस्लिम समाज से माफ़ी मगनी होगी ,और मुस्लिम समाज में यह विश्वास लाना होगा की उनका दल मुस्लिम समाज का विरोधी नहीं होकर किसी भी देश द्रोही का विरोधी है । यहाँ मैं यह उल्लेख करना चाहूँगा की राष्ट्र द्रोही कोई भी व्यक्ति हो सकता है पूरा समाज नही,इस देश में रहने वाले अधिसंख्य मुसलमान विदेशी रक्त के नहीं हैं ,इनके पूर्वज भी कई पीढियों पहले बहुसंख्यक हिंदू समाज के ही थे जिनके द्वारा किन्ही विपरीत परिस्थिति में धर्म परिवर्तन करना पड़ा,केवल धर्मान्तरण के आधार पर इनके विरुद्ध असमानता का आचरण ठीक नहीं ,इस लिए पार्टी को देश की राजनीतिक मुख्य धारा में आने के लिए अपने आप में संशोधन अभी से करते हुए ऐसे सभी राज्यों में जिनमे उनका जनाधार नहीं है उसके लिए तीव्र गति से प्रयास करना होगा,यदि यह सम्भव नही हो पा रहा हो तो किसी क्षेत्रीय दल के साथ गठबंधन अभी से बनाने का प्रयत्न करना होगा । यदि इस कार्य योजना पर काम शुरू करने के बाद अगले २०१४ के निर्वाचन में पार्टी को सफलता मिलने में कोई संदेह नहीं है।

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