Sunday, May 3, 2009

क्या दो सबसे बड़े राष्ट्रीय दलों का राष्ट्र हित में गठबंधन सम्भव नही ?

अभी चुनाव चल ही रहे हैं किंतु राजनितिक दलों में अभी से ही केन्द्र में अगली सरकार बनाने के लिए जोड़ -तोड़ शुरू हो गया है ,इस कार्य में वाम दलों और अन्य क्षेत्रीय दलों के नेता ज्यादा प्रयत्नशील दिखाई दे रहे हैं ,कल तक राष्ट्रीय जनतात्रिक गठबंधन के सहयोगी जनता दल(यूनाइटेड) जो २००४ तक सेकुलर नही था यकायक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पटरी के महा सचिव श्री प्रकाश करात की नजरों में सेकुलर होगया और सरकार बनाने की कयायद के तहत उनको तीसरे मोर्चे में शामिल कर सरकार बनाने का न्योता दे दिया ,और मजेदार बात यह कि जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव को भी वाम पंथियों की अच्छाई दिखाई देने लगी उधर दूसरी तरफ़ तीन दिन पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव ने मेरठ और मुजफ्फर नगर की चुनावी सभाओं में भाषण देते हुए जनता से कहा कि उनकी राय में अगले दस वर्षों तक केन्द्र में अस्थिरता होनी चाहिए,श्री यादव की इस बात के निहितार्थ स्वयं स्पष्ट है ,किंतु उनका भाषण चिंतनीय अवश्य है। वास्तव में उनका वक्तव्य एक सोचे समझे षडयंत्र का हिस्सा है जिसके विषय में राष्ट्र स्नेही जनों को विचार करना चाहिए । दक्षिण में सभी राजनितिक दल श्रीलंका में तमिलों के हित की जारही है और लिट्टे के कमांडर प्रभाकरन के विरुद्ध श्रीलंका सरकार और सेना की कार्यवाही रोकवाने के लिए केन्द्रीय सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है और यही मुद्दा तमिलनाडु में चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया है ,जबकि आपको स्मरण होगा कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गाँधी की हत्या लिट्टे कमांडर प्रभाकरन द्वारा कराया गया था ।अगली सरकार के गठन में तमिलनाडु के सांसदों का बहुत महत्त्व है और सुश्री जयललिता स्वयं वाम दलों के साथ चुनाव लड़ रही हैं ,ऐसे में वाम दलों के नेत्रित्व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का प्रयास संभावित चुनाव परिणामों की दृष्टि से महत्त्व पूर्ण है किंतु राष्ट्रीय हित में सरकार गठन से अधिक स्थिर सरकार के गठन का मसला उससे जादा महत्वपूर्ण है ,इसलिए मेरा एक सुझाव राष्ट्रीय हित में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं,समर्थकों से है कि यदि आप निष्पक्ष रूप से विचार करे तो आप पाएंगे कि दोनों दलों की आर्थिक नीति ,विदेश नीति और परमाण्विक नीति लगभग समानता है अन्तर केवल छिटपुट के हैं जैसे कांग्रेस पार्टी स्वयम को सेकुलर और भाजपा को साम्प्रदायिक मानता है ,क्या राष्ट्र हित में और देश को सही दिशा प्रदान करने के लिए और अनेक संवैधानिक परिवर्तनों जैसे जन प्रतिनिधि कानूनों में किए जाने वाले संशोधन और आर्थिक विकास और विश्वव्यापी मंदी से निपटने के लिए कार्य ,और आतंकवाद से लड़ने के कार्य इतने ज्यादा महत्वपूर्ण है जिसके लिए सरकार का स्थिर होना अनिवार्य है जिसके लिए छोटे -छोटे दलों के गठबंधन से ज्यादा अच्छा और टिकाऊ दोनों शीर्ष दलों का गठबंधन जरूरी है। पूर्व में भाजपा ने पहले १९९८ और दूसरी बार १९९९ से २००४ तक गठबंधन की सरकार चला रहे थे जिसमे उनके गठबंधन ने एक साँझा प्रोग्राम का मसौदा तय कर सरकार चलाया जिसमे भाजपा की घोषित नीति धारा-३७० की समाप्ति,राम जन्म भूमि ,कमान सिविल कोड जैसे तथाकथित विवादित विषयों को अलग कर दिया गया था ,इसी तरह कांग्रेस ने राजद,द्रमुक,लोजपा ,झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और वाम दलों के सहयोग से २००४ से अबतक सरकार चलाया गया,देखे तो इस गठबंधन में कांग्रेस और वाम दल दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी थे जिसके परिणाम स्वरुप परमाणु समझौते के समय दोनों का आपसी विरोध खुलकर सामने आगया . लिहाजा जिस प्रकार से मीडिया से खबरें आ रहीं हैं ,उनकों देखते हुए किसी एक दल को लोकसभा में बहुमत नही मिलना लगभग निश्चित है, उस दशा में जोड़- तोड़ से बनाने वाली किसी सरकार का स्थिर होना भी संदिग्ध है ,जबकि आज देश की आवश्यकता स्थिर सरकार की है . इसलिए देश के व्यापक हित में दोनों शीर्ष दलों के गठबंधन की सरकार आज देश की मांग है ,क्या यह सम्भव नही हो सकता यदि नही तो क्या दोनों दलों की राष्ट्रीयता संदेह के घेरे में नहीं है ?
कृपया आप गंभीरता से सोचे

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