Sunday, May 24, 2009

साम्प्रदायिकता के आधार पर देश का विभाजन उचित नही

मैं बहुत दिनों से यह सोच रहा था की देश की आज़ादी ब्रिटिश शासकों द्वारा धार्मिक आधार पर बटवारे के परिणामस्वरूप हुआ था किंतु हम भारतवासियों ने हिंदू धर्म के विशाल व्यक्तित्व के आधार पर बटवारा हो जाने के बाद भी मुसलमानों को देश में रहने की इच्छा के आधार पर स्वीकार किया और जैसा किसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अर्न्तगत किसी भी अल्पसंख्यक को अधिकार की समानता होनी चाहिए वैसा ही अधिकार दिया था ,भारत में आज़ादी के लगभग पैतालीस वर्षों तक कांग्रेस पार्टी का शासन था,किंतु उनके द्वारा प्रारंभिक अवस्था से और ही आगे चलकर सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द्य स्थापित करने का प्रयत्न करते हुए शुरू से ही जातीय और साम्प्रदायिक आधार पर चुनावों की सफलता के लिए अपने प्रत्याशी चुने जाते रहे जिसके आधार पर १९५२ से १९७७ तक केन्द्र की सत्ता उनके हाथों में रही,पहली बार इमरजेंसी के बाद लोक नायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्त्व में देश की जनता ने पहली बार साम्प्रदायिकता और जातीयता की भावना से ऊपर उठ कर कांग्रेस की सत्ता को चुनौती देते हुए उन्हें पराजित किया था,किंतु जनता पार्टी के छतरी में नेताओं के व्यक्तिगत महत्वकांछा के कारण उनमे बिखराव होजाने के बाद कांग्रेस पुनः सत्ता में लौट आयी ,देश में कांग्रेस के शासन में अनेकानेक सम्प्रदायिक दंगे हुए जिनकी जांच के लिए कितने ही आयोग गठित हुए किंतु उनका परिणाम शून्य रहा ,आप सभी इस तथ्य से वाकिफ है की दंगों में मुसलमान और हिन्दू दोनों ही मारे जाते रहे हैं,किंतु कभी भी कांग्रेस पर सांप्रदायिक होने का आरोप कभी किसी भी दल ने नहीं लगाया किंतु आज भाजपा को केवल अयोध्या विवाद और गोधरा के आधार पर कांग्रेस पार्टी और उनके चाटुकार राजनीतिक नेताओं और दलों ने देश के अन्दर समाज में सांप्रदायिक और सेकुलर के आधार पर बाँट दिया गया है ,यह विभाजन कर कांग्रेस का असली उद्देश्य भाजपा को केन्द्रीय सत्ता से दूर करने का प्रयास है ,इस सम्बन्ध में मैं आप सभी से विचारवान व्यक्ति की तरह सोचने का निवेदन करना चाहता हूँ की क्या भाजपा के छः वर्षों के शासन में मुसलमानों को देश निकला दे दिया गया या उनके किसी भी संवैधानिक अधिकार को कम करने का कार्य किया गया ,जहाँ तक गोधरा कांड का विषय है वह तात्कालिक प्रतिक्रिया का परिणाम था,यदि गुजरात के दंगों की बात है क्या ये दंगे १९९० के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के और मेरठ के मलियाना और भागलपुर के दंगों से कम घिनौने और १९८४ के सिक्ख विरोधी दंगों की तुलना में बहुत कम थी ,किंतु गुजरात के दंगों के ही कारण आज भाजपा को अस्पृश्य बना दिया गया है जबकि १९८४ में श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हिंदू कट्टरवाद के घोडे पर चढ़कर श्री राजीव गाँधी द्वारा तीन चौथाई बहुमत लोकसभा में प्राप्त कर अपने शासन की स्थापना किया गया था,आज कहा जाता है की अयोध्या में बाबरी मस्जिद की शहादत की जिम्मेदारी भाजपा की थी ,जबकि वास्तविकता यह है की राम मन्दिर में ताला श्री राजीव गाँधी द्वारा खुलवाया गया था और श्री राजीव जी ने १९८९ के चुनाव का शंखनाद अयोध्या की चुनाव सभा से किया गया था
कृपया सोचे की क्या इस प्रकार की राजनीतिक अस्पृश्यता और विभाजन क्या उचित है ?

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