Sunday, June 7, 2009

भारतीय लोकतंत्र के लिए मुख्य विपक्षी दल का मजबूत होना अनिवार्य

लोकतंत्र में लोक सभा में सभा में सत्ता पक्ष के साथ मुख्य विपक्षी दल का संगठित हो कर सरकार के कार्यो पर नजर रखना भी जरूरी है,ऐसे में मुख्य विपक्षी दल के रूप में राजग गठबंधन को सक्रिय रहना जरूरी है किंतु ऐसा लगता है कि वर्तमान में राजग की दशा और दिशा दोनों ही ठीक नहीं है,चुनाव के बाद गठबंधन की एक बार भी बैठक नही हुई ,गठबंधन के दलों में कुछ विश्वास का संकट जरूर है क्योंकि आज भी राजग का नेतृत्त्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी के पास है जबकि स्वस्थ कारणों से उनके द्वारा राजनीती से सन्यास ले रखा है यही स्थिति कमोबेश गठबंधन के संयोजक श्री जार्ज फर्नांडीज की भी है जो अस्वस्थ होने के कारण सक्रिय नही हैं किंतु गठबंधन के दलों ने इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया ,इस दशा में गठबंधन के मुख्य घटक भाजपा का दायित्व है कि सदन में और सदन के बाहर सरकार की निगरानी करे ,किंतु भाजपा में भी अभी किसी तरह की कोई पहल नहीं हुई हाँ यह अवश्य हुआ कि दोनों सदनों के प्रतिपक्ष के नातों क्रमशः श्री लाल कृष्ण अडवानी और श्री अरुण जेतली ने दोनों ही सदनों में सरकार के अच्छे कार्यों पर सरकार को समर्थन का भरोसा दिया है ,जिसके उदहारण के रूप में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस में कांग्रेस सरकार को महिला आरक्षण के मुद्दे पर स्पष्ट समर्थन देने का एलान किया हैमुख्य विपक्षी दल का सरकार के राष्ट्रीय महत्त्व के मसलों पर सकारात्मक सहयोग दिया जाना उचित है,किंतु मुझे यहाँ भाजपा के अन्दर होने वाले नेताओं के आपसी विवाद से बहुत चिंता होरही है,जो हालात दिखाई देरहा है ,उसके अनुसार अभी तुंरत तो आपसी द्वंद तलने के दृष्टि से श्री अडवाणी ने सदन के नेता से हटने के विचार को तात्कालिक रूप से रोक लिया है किंतु अंततोगत्वा यह समस्या पार्टी के समक्ष फिर सामने आने वाली है ,इससे बचा नहीं जा सकता है ,अभी लोक सभा चुनाव में हार के कारणों पर पार्टी ने सही ढंग से विचार भी नहीं किया है फिर इसी साल पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी होना है ,पार्टी में दूसरी कतार के नेताओं का द्वंद आप चुनाव ने पूर्व ही देख चुके हैं,जिस तरह से श्री राजनाथ सिंह और श्री अरुण जेटली में जिस प्रकार का टकराव दिखाई दिया वह पार्टी के लिए शुभ नहीं है,पार्टी आज वक्त की मांग के अनुसार किसी युवा नेतृत्त्व का उभर कर आना अनिवार्य है किंतु समस्या यहाँ भी है ,कि जो शक्तिशाली हैं वे युवा की परिभाषा के अनुसार कसौटी पर खरे नही उतरते हैं,श्री मुरली मनोहर जोशी ७२ वर्ष से अधिक आयु के हैं,राजनाथ सिंह और अरुण जेटली आदि साठ साल से अधिक आयु के नेता हैं,अब देखना यह है कि यह पार्टी पुनः संगठित हो जाती है या फिर १९८४ की तर्ज पर पुनः लोक सभा के सदस्य वाली हो जायेगीपार्टी में सुधार के आसार अभी तक दिखाई नही दे रहा है,पार्टी ने चुनाव में पार्टी के लिए सही प्रत्याशी चयन पर भी प्रश्न चिन्ह लगाये जा चुके हैं ,साथ ही आज तक पार्टी नेतृत्त्व द्वारा पार्टी के प्रताय्शियों के विरुद्ध भितरघात करने वालों पर भी कार्यवाही नहीं कियाजबकि अन्य पार्टियों ने भितरघात करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही कर दिया है,लगता है पार्टी पराजय के आघात से अभी अपने आप को निकाल नहीं पाई हैजहाँ तक पराजय का प्रश्न है इस सन्दर्भ में मैं अपने पूर्व लिखे गए पोस्ट में इस सम्बन्ध मेंलिख चुका हूँ कि पार्टी ने लोक सभा के १६४ सीटों पर एक प्रकार से प्रत्याशी नही खड़ा किया था,उसके बाद उत्तर भारत मेंपरती किस आधार पर बड़ी जीत का स्वप्न देख रही थी जबकि दिल्ली ,हरयाणा ,पंजाब ,उत्तर प्रदेश में पार्टी ने किस तरह से अपने जनाधार होने के विषय में सोच लिया थादिल्ली ,उत्तर प्रदेश,राजस्थान में पार्टी गंभीर मतभेद के दौर से गुज़र रही थी,विधान सभा के चुनाव में दिल्ली और राजस्थान के परिणाम पार्टी के विरुद्ध चुके थे,इसलिए मेरा पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से आत्म विश्लेषण कर इस पराजय के शोक से उबर कर अगली रणनीति बनाकर एक बार फिर से आपसी तालमेल बैठते हुए और वैमनस्यता का त्याग कर आपसी विश्वास का वातावरण बनाते हुए जनता के हितों की लडाई का नेतृत्त्व करने का प्रयास करेयदि पार्टी से किसी को शिकायत हो तो पार्टी फोरम पर उचित ढंग से रखते हुए समाधान निकलने का प्रयास करे ,यहाँ एक और महत्त्व पूर्ण बात का स्पस्ट उल्लेख करना चाहता हूँ कि पार्टी ने सिद्धांतों के साथ सत्ता हासिल करने के लिए जो भी समझौता किया या कोई शार्ट कट अपनाने का प्रयास किया उससे पार्टी का जनाधार खिसक गया अब जो भी नीति अपनानी है उसपर अभी से दृढ़ता के साथ काम करते हुए पुनः अपने जनाधार को वापस लाने का सक्रिय और कठिन प्रयास करना होगा ,साथ ही दागी नेताओं को पार्टी में प्रवेश पर सख्त रूख अपनाने की आवश्यकता है .

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