Sunday, June 21, 2009

देश हित में बी०जे0 पी0 का मजबूत होना आवश्यक है

लोकसभा के चुनाव में बी० जे० पी० की हार के बाद जिस प्रकार पार्टी में मतभेद नेताओं में उभर कर आए हैं ,इन्हे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मिल बैठ कर हल करना होगा क्योंकि यदि पार्टी पहले अपने आप को संभाल नही पाई तो आगे चलकर पार्टी और अधिक कमजोर होगी जो अपने आप ही राष्ट्र हित में नहीं हैमैंने अपने पिछले पोस्टों में से किसी एक पोस्ट में लिखा है की श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा १९९९ के चुनाव के पूर्व राष्ट्रीय पैमाने पर विभिन्न पार्टियों से गठबंधन कर राजग को मजबूत करते हुए चुनाव में विजयश्री पाई थी ,उनके बाद पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना दृढ़ गठबंधन बनने में सफल नही रही साथ ही पार्टी का चुनाव में नकारात्मक प्रचार उसकी हार का सबसे मुख्य कारण है ,यह पराजय निश्चित रूप से नेतृत्त्व की पराजय है और उसके साथ ही पार्टी के वर्ग द्वारा चुनाव के मध्य नरेन्द्र मोदी को अगले प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना दूसरी बड़ी गलती थी ,तीसरा हार का कारण बी० जे० पी द्वारा वरुण गाँधी के बयान से अपने को अलग करना आम भारतीय मतदाता को एकदम पसंद नहीं आयाकिंतु इतनी सी बात को समझने पार्टी के वरिष्ठ नेता लोगों को बात क्यो समझ में नहीं आरही है जो समझ के परे है ,ऐसा लगता है की पार्टी के नेता इस संकट की घड़ी में अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं जो बहुत निराशा जनक बात है,आज आवश्यकता तो इस बात की है की पार्टी के नेता गण अपने आपसी स्वार्थ और मतभेद भुलाकर पार्टी को मजबूत करने का सक्रिय प्रयास करें
जिनपर मैं नीचे उल्लेख कर रहा हूँ :-
-सर्व प्रथम पार्टी को अपना सामाजिक विकास करने का प्रयत्न करना होगा ,इस क्रम में पार्टी को अपना जनाधार बढाने के लिए देश की जातियों और सभी धर्म अथवा आस्था के लोगों में अपनी पैठ बनाने का काम करना होगा जिससे अगले किसी भी चुनाव चाहे किसी प्रान्त की विधान सभा का चुनाव हो अथवा अगली लोक सभा के चुनाव में पार्टी देश के समक्ष काग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में सामने अपनी जगह बनाने में सफल होदेश में पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी मुस्लिम मतों के आधार पर विजयी होकर हिन्दू बहुसंख्यक मतदाता के मतों से विजयी हुई जो एक सच्चाई है इसे लेकर पार्टी अपने भ्रम को जितनी जल्दी दूर कर लेगी उतनी ही जल्दी लाभ की स्थिति में आने में सफल होगीदेश का सामान्य हिन्दू आज भी बहुत ज्यादा सहिष्णु है और वह लडाई - झगडे की राजनीती से हमेशा दूर रहा है ,इसी कारण उस मतदाता ने भाजपा के खास तौर पर नरेन्द्र मोदी और वरुण गाँधी के हिंदुत्व को अस्वीकार कर कांग्रेस जैसी सहिष्णु पार्टी को मत दियाइस बात को पार्टी नेतृत्त्व को गाँठ बाँध लेनी होगी तभी पार्टी जनाधार बढाने में सफल हो सकती है अन्यथा परिणाम इस चुनाव के परिणाम से भिन्न नही पाएंगे
- पार्टी को ६२ साल के बाद भी दक्षिण के राज्य तमिलनाडु,आन्ध्र प्रदेश और केरल,पूर्व में उडीसा और पश्चिम बंगाल था आसाम जैसे राज्यों में अपनी जड़े ज़माने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु परिणाम शून्य के इर्द गिर्द ही रहा ,इसलिए इन राज्यों में अपने संगठन के आधार को मजबूती प्रदान करते हुए दूसरी सक्षम सहयोगी राजनीतिक पार्टी से अभी से सहयोग करने के लिए आधार तैयार करना जरूरी है, किंतु यह पहले कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा का पूर्णतया त्याग करने के बाद ही सम्भव है, साथ - साथ महाराष्ट्र में अपने बल पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए शिवसेना के प्रभाव के क्षेत्रों में अपनी पार्टी का संगठन मजबूत करना होगाइस चुनाव में हमने देखा की पार्टी को शिवसेना के साथ गठबंधन के कारण ही मुंबई और आसपास के लगभग १० लोकसभा की सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं के कारण हार का सामना करना पड़ा
-भाजपा कांग्रेस पार्टी के आलावा दूसरी बड़ी पार्टी है जो उसका विकल्प बनने की क्षमता रखती है अतः यह समय और देश हित की मांग है की पार्टी मजबूत विकल्प बनकर उभरे , उल्लेखनीय है की देश के केन्द्रीय सत्ता में आए बिना पार्टी अपने किन्ही भी सिद्धांत को लागू कराने में सफल नहीं हो सकेगी
४- पार्टी और साथ ही मात्रि संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी जिसके जनाधार में भी गिरावट आयी है उसे भी अपने सांगठनिक ढांचे को दृढ़ बनाने के लिए सक्रीय प्रयास करना होगा ,यदि संगठन के लोग गौर करें तो उन्हें स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है कि संगठन में नए कार्यकर्त्ता नहीं जुड़ रहे हैं ,संघ के अन्य अनुसांगिक संगठन जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् जैसे संगठन भी नए कार्यकर्ताओं का अभाव झेल रहें हैं और विश्वविद्यालयों में ये अपने पक्ष में वातावरण बनाने में सफल नहीं हो पाराहे है ,रामजन्म भूमि प्रकरण में पार्टी द्वारा किसी निष्कर्ष पर न पहुचने के कारण हिन्दू संत समाज में विश्व हिन्दू परिषद् भी अब पहले जैसा मजबूत नहीं रह गया है जिसके कारण पार्टी के सहयोगी संगठन भी अब पहले जैसा प्रभाव डालने में सक्षम नहीं रह गए हैं ,जिस पर संघ को भी एक बार पुनर्विचार जरूरी होगया है।

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