Saturday, June 13, 2009
महिला आरक्षण देश की प्रगति के लिए अनिवार्य
केन्द्र की वर्तमान सरकार द्वारा महिला आरक्षण के मामले को अपने १०० दिनों की योजना में सम्मिलित कर अपने पिछली सरकार के संकल्पों को पूरा करने के पक्के इरादे को राष्ट्रपति द्वारा संसद के संयुक्त सदन के अभिभाषण के माध्यम से जाहिर कर दिया है ,यह कदम देश के सर्वांगीण विकास के लिए विगत् २३ वर्षों से अपेक्षित था । सर्व प्रथम महिला आरक्षण का बिल संसद में श्री देवगौड़ा की सरकार के कार्यकाल में दिनांक १२-०९-१९९६ को प्रस्तुत किया गया था किंतु संयुक्त मोर्चा सरकार में मत वैभिन्यता वजह से से महिला आरक्षण को गौड़ मानते हुए इसे छोड़ दिया ,दूसरी बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने वर्ष १९९८ में सदन में बिल पेश किया किंतु तभी लोक सभा भंग होने के कारण बिल अधर में लटक गया ,बाद में श्री वाजपेयी की सरकार द्वारा पुनः २३ दिसम्बर १९९४ को बिल का मसौदा लोक सभा में प्रस्तुत हुआ जिसका मुखर विरोध श्री मुलायम सिंह और श्री लालू प्रसाद द्वारा किया गया ,सरकार द्वारा सभी दलों में बिल पर सहमती बनाने का प्रयास किया गया किंतु श्री वाजपेयी को सफलता प्राप्त नहीं हो सकी । सहमती में श्री शरद यादव,,श्री मुलायम सिंह और श्री लालू यादव आदि माडल समर्थक ३३ प्रतिशत महिला आरक्षण कोटे में दलित,पिछडी और अल्पसंख्यक का आरक्षण चाहती थी। महिला आरक्षण की स्थाई संसदीय समिति के अध्यक्ष डा० नल चिनपन द्वारा देश की उन सीटों की पहचान करने का प्रयास किया जहाँ महिलाएं औसत में अधिक हो, जिनका आरक्षण किया जा सके । इसी क्रम में पिछली सरकार ने अपने अन्तिम सत्र के पूर्व विधेयक लोक सभा के बजाय राज्य सभा में प्रतुत किया गया ,जो एक बुद्धिमानी पूर्ण कार्य था ,यदि मामला लोक सभा में प्रस्तुत होता तो १४ वीं लोक सभा के बाद प्रस्तुत बिल १५ वीं लोक सभा में एक नही होता। यहाँ मैं बताना चाहता हूँ की देश में आज जब हम २१ वीं सदी में प्रवेश कर रहें है तब देश की आधी जनसंख्य को राजनीती से अलग करना उचित नहीं है और उन्हें समानता के आधार पर उनकी जनसँख्या के अनुरूप लगभग पचास प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए जिस सिद्धांत को आरक्षण के मामलों में आधार बन गया है "जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी ",इसलिए सिद्धान्तः तो ५० प्रतिशत आरक्षण होना था किंतु सरकार ने प्रारभिक रूप से ३३ प्रतिशत का मन बना लिया है जिसका स्वागत करना चाहिए ।
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