Monday, May 18, 2015

भारत और चीन सम्बन्धों की आवश्यकता

भारत आज जिस विकास की प्रक्रिया से गुज़र रहा है उसके लिये चीन से सम्बन्ध दृढ करना समय की मांग है।भारत और चीन एक दूसरे से हजारों वर्षों से बौद्धिक और व्यापारिक आधार पर जुड़े रहें हैं।भारत से अनेक विद्वान् और काबिल लोग चीन गए जिनमे आज़ादी के पहले डा0द्वारका नाथ कोटनिस का उल्लेख करना उचित होगा जिन्होंने चीन में रहकर चीन वासियों को अनेक महामारी से बचाने का प्रयास किया उसी तरह चीन से फाह्यान,ह्वेनसांग सहित अनेक यात्री भारत आये तथा बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण किया।
1947 में भारत स्वतन्त्र हुआ वहीं चीन एक नए रूप में 1949 में आया जब जनवादी क्रांति के बाद माओत्से तुंग ने बाग डोर सम्भाली।50 के दशक में भारत और चीन के सम्बन्ध अपने मधुरतम दौर में थे।दोनों देशों के अनेक नेताओं ने एक दूसरे के देश की यात्रा किया।1954 में भारत ने बौद्ध धर्म के पांच सिद्धांतों के आधार पर विदेश निति के पंचशील के सिद्धांत की घोषणा किया।जिसे 25 जून 1954 को चीनी प्रधान मंत्री चाउ एन लाई ने भारत यात्रा के समय स्वीकार किया।किन्तु उसी समय चीनी ख़ुफ़िया एजेंसी से भारत की सामरिक तैयारी की जानकारी उन्हें मिल गई थी।साथ ही हमारे तत्कालीन प्रधान मंत्री को शांति का कबूतर उड़ाने के शौक और नोबल शांति पुरस्कार पाने की लालसा ने राष्ट्रीय सुरक्षा की अवहेलना करते हुए चीन द्वारा तिब्बत को कब्ज़े में लेने का विरोध नहीं किया।जिसके परिणाम स्वरूप हमारी सीमा चीन से जुड़ गई।इधर हम लोग हिंदी चीनी भाई भाई के नारों में अभिभूत थे।उसका लाभ उठा कर चीन ने 1962 की सर्दियों में लद्दाख और उत्तर पूर्व की सीमा पर आक्रमण कर बहुत बड़ा भारतीय क्षेत्र अपने कब्ज़े में ले लिया।उसके बाद से चीन ने हमारे पड़ोसी शत्रु देश से घनिष्ठ मित्रता करली।साम्यवादी चीन अपने कठोर अनुशासन की बदौलत आज एक आर्थिक शक्ति बन गया।राजीव गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में तथा बाद में अटल जी के काल में चीन से सम्बन्ध सुधारने की आवश्यकता महसूस की गई।आज भारत चीन के मध्य बड़े पैमाने पर व्यापार होता है।अब यह सत्य है की चीन को भी भारत से अच्छे सम्बन्ध बढ़ाने की आवश्यकता है।इसलिए पाकिस्तान से अधिक निकटता होंने के बाद भी उनको भारत के महत्व पता है।प्रधान मंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से एक अच्छा मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने की जरूरत के आधार पर सत्ता में आने के बाद से ही इस दिशा में प्रयत्न करना शुरू कर अब वे स्वयं चीन यात्रा पर हैं।इस यात्रा से तत्काल पचास वर्ष पूर्व हुई कूटनीतिक त्रुटि यकायक सुधर जाने की सम्भावना तो नही है।किंतु सुधार की दिशा में एक सार्थक कदम जरूर उठाया जा सकता है।

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