उत्तर प्रदेश के विधान सभा निर्वाचन २०१४ लोक सभा के सामान्य निर्वाचन के पूर्व का सेमी फिनाल था.उसमे बीजेपी काफी पीछे रह गयी,बीजेपी का नेत्रित्व और कार्यकर्त्ता दोनों को परिणाम से बहुत निराशा हाथ लगी,किन्तु केवल परिणाम से हताश होने की आवश्यकता नहीं है,इसके लिए पार्टी के सभी नेता और कार्य करता को बैठ कर गंभीर चिंतन की जरूरत है,पार्टी को देखना होगा की पार्टी किन कारणों से तीसरे स्थान पर खिसक गयी . निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की अभिसूचना जारी होने के काफी दिनों बाद पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की,तथा उसके बाद पार्टी द्वारा चुनाव घोषणा पत्र जारी किया गया .बीजेपी के घोषणा पत्र के पूर्व सपा ने अपना घोषणा पत्र जारी करने के साथ उसका बृहद स्तर पर प्रचार और प्रसार कर दिया था जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हो चूका था,ऐसा लगता था बीजेपी ने चुनाव के पूर्व ही अपनी पराजय मान लिया था.यदि आप २००७ के विधान सभा चुनाव से २०१२ के बीच प्रदेश और देश के स्तर पर अवलोकन करने पर यह प्रत्यक्ष दिखाई देगा की पार्टी ने अपनी विपक्ष की भूमिका का सही तरह से निर्वाह नहीं किया और जन आकान्शाओं और समस्यायों को लाने के लिए उचित मंच प्रदान नहीं किया.साफ़ तौर पर कहा जा सकता है की पार्टी के पास सक्षम नेत्रित्व का आभाव दिखाई दे रहा है.
यहाँ मैं यह तथ्य भी उल्लिखित करना चाहूँगा की पार्टी को अपनी नीतियों में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है.बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में अयोध्या में मंदिर निर्माण के मुद्दे का बिला वजह प्रचार किया जबकि मसला सर्वोच्च न्यायलय के विचाराधीन है.मेरी राय में आगामी २०१४ के लोक सभा के सामान्य निर्वाचन के पहले पार्टी में युवा नेत्रित्व और नयी नीतियों की आवश्यकता पर ठोस कार्यक्रम बनाकर अभी से तयारी शुरू कर देनी चाहिए.
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