Sunday, May 30, 2010
जन गणना जाति के आधार पर राष्ट्रीय एकता के विपरीत है
ब्रिटिश राज में १९३१ की जन गणना जाति के आधार पर किया गया था ,आज़ादी के बाद से जितनी भी जन गणना हुई उनमे से किसी भी गणना में जाति को सम्मिलित नहीं किया गया था,किन्तु इस बार की जन गणना के बारे में संसद में समाजवादी पार्टी और राजद के नेता क्रमशः श्री मुलायम सिंह जी और श्री लालू यादव जी जैसे नेता जिनकी पहचान ही जाती के नाम पर होती है तथा इन नेताओं ने अबतक की इनकी राजनीति का आधार केवल जातियां ही रही हैं,जिनके आधार पर इन दोनों दलों का अस्तित्व आज तक बना है. किन्तु अफ़सोस इस बात का है कि इन दलों की आड़ में राष्ट्रीय दल जैसे कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी जातिगत आधार पर जनगणना की बात का समर्थन किया और इस राष्ट्र विरोधी आग को हवा देने का काम कर रहें हैं. दुर्भाग्य से मा० प्रधान मंत्री जी द्वारा भी संसद के पिछले सत्र के समापन के पूर्व अपनी सहमति देदिया था,जिसके पश्चात् देश भर में इस बात पर राष्ट्रीय बहस की जानी चाहिए .इस विषय पर देश के सभी जागरूक मानस को बहुत गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता हैं,आज जब देश विकास की रह पर अग्रसर हैं ,और देश का सामाजिक ढांचा परिवर्तन कर रहा है ,एकतरफ जहाँ समाज में खाप पंचायतों के निर्णय के विरुद्ध जन मानस है वहां जातिगत आधार पर जनगणना की बात बेमानी है तथा राष्ट्रीय एकता के भी विपरीत है ऐसा मेरा मानना है.जाति की राजनीती करने वाले नेताओं से भी मेरी अपील है कि उनकी राजनीतिक पारी अब समाप्त प्राय है आगामी पीढी की राह में वे कांटें क्यों बिखरा रहे हैं.इन सभी नेताओं को अपने मत पर देश के भविष्य को देखते हुए एकबार पुनर्विचार करने का कष्ट करे.
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